यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
से भी तेज चला जा रहा था। तरुण यह जानने की चेष्टा ज़रूर कर रहा था कि यह कौन सा स्थान है। अन्त में एक मकान के द्वार पर रुक गया । द्वार छोटा सा था, पर दीवारें बहुत ऊंची-ऊंची थीं। वह द्वार खोल ही रहा था कि तरुण ने तलवार नंगी करके उस की गर्दन पर रख कर कहा-"तू कौन है, और यहाँ मुझे किस मतलब से लाया है।" परन्तु वह व्यक्ति कुछ भी उत्तर न दे कर लोमड़ी की भाँति फुर्ती से मकान में घुसकर गायब हो गया । तरुण क्षण भर रुका। फिर अपने साथी सिपाही के सुपुर्द अपना घोड़ा कर नंगी तलवार हाथ में लिए द्वार के भीतर घुस गया। उस ने देखा-भीतर खुला मैदान है, मैदान में खुशनुमा बाग़ है। भाँति-भाँति १७७