तख्त पर अहमदशाह रौनक -अफ़रोज़ हुए। कुछ दिन लाल किले में जश्न होते रहे। यह सब उलट-फेर दिल्ली में हो ही रहे थे कि तुरन्त सुना गया कि भरतपुर अंग्रेजों ने सर कर लिया। यह भी सुना कि होल्कर सरकार भरतपुर के इस पतन से इस क़दर निराश हो गए कि वे पागल हो गए, और कुछ दिन बाद उन का इन्तकाल हो गया । इस प्रकार देखते ही देखते मराठा-मण्डल का खात्मा हो गया। दिल्ली का तख्त उलट गया । अब तो भारत में अंग्रेज़ ही अंग्रेज़ थे । अब अंग्रेज़ों ही की कृपादृष्टि प्राप्त करना चौधरी ने आवश्यक समझा। वे अवसर पा कर वजीरे आज़म से मिले और होल्कर का खत उन्हें दिया। होल्कर ने उस में चौधरी की बहुत सिफ़ारिश की थी। वज़ीर चौधरी से बहुत मेहरबानी से पेश आया, और उस ने शाही तौर पर चौधरी के चालीस गाँवों का पक्का पट्टा नए सिरे से लिखा कर बादशाह सलामत की मुहर करा दी। इसके बाद उसने चौधरी को सलाह दी कि वह अग्रेज़ रेजीडेन्ट विक्टर लोनी से किसी तरह मुलाक़ात करके अंग्रेजों की कम्पनी-बहादुर से भी अपनी रियासत का पक्का पट्टा करालें। वज़ीर ने ही चौधरी को दिल्ली की मशहूर रंडी जुबैदा खातून से मुलाक़ात करा दी, जो आक्टर-लोनी की नाक का बाल बनी हुई थी। चौधरी ने बहुत-सा रुपया चटा कर खातून को अपनी सिफारिश के लिए राजी कर लिया। और उसकी सिफारिश से चौधरी का मतलब सध गया। उसकी तमाम ज़मींदारी का क़बूली पट्टा कम्पनी बहादुर की सरकार से मंजूर हो गया । और चौधरी ने लिख दिया कि वह बाक़ायदा कम्पनी बहादुर को खिराज-लगान देता रहेगा। तथा फौज नहीं रखेगा। इस प्रकार कृतकृत्य होकर तथा दो बरस दिल्ली में रह कर चौधरी मुक्तेसर लौटा। चौधरी का घराना देखते ही देखते मुक्तेसर में अपनी जड़ पकड़ गया, और आस-पास के सब ज़मींदारों से पद-प्रतिष्ठा। और धन में अग्र- गण्य हो गया। १४४
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