मसरूफ़ियत के कारण जनाब गवर्नर-जनरल बहादुर खुद तशरीफ़ नहीं ला सके, इसी से मुझे उन्होंने अपने सब इख्तियारात दे कर शाही खिदमत में भेजा है।" "तो मतलब बयान हो।" "सब से पहले मैं आनरेबुल कम्पनी-बहादुर की सरकार की ओर से आप को यक़ीन दिलाता हूँ कि कम्पनी बहादुर की सरकार ने जो-जो वादे किए हैं-वे सब पूरे किए जाएँगे । और इस बात का पूरा ध्यान रखा जाएगा कि बादशाह सलामत और उनके खानदान के किसी आदमी को कोई तकलीफ़ न हो। इसके अलावा लाल किले की चहारदीवारी के भीतर इन्तज़ाम में कोई फ़िरंगी दखल नहीं देगा।" "ममनून हुआ, लेकिन मेरी बक़ाया पेन्शन ?" "उसके मुतल्लिक़ मैं गवर्नर-जनरल को लिखूगा। उम्मीद है कि वह आप को मिल जायगी । खातिर जमा रहे ।" "तसल्ली हुई । तो अब दरबार बर्खास्त, शुक्रिया ।" इतना कह कर बादशाह ने एक दस्तक दी, और तख्त से उठ खड़े हुए । हवादान आया और बादशाह महलों में चले गए। इस प्रकार चन्द मिनटों में ही यह दरबार खत्म हो गया । महल में पहुँचते ही बादशाह बेहोश हो गए। और शाही हकीम को बुलाने की दौड़-धूप होने लगी। लार्ड लेक ने यह दशा देखी तो वे तेज़ी से टमटम पर सवार होकर अपने बंगले पर पहुंचे और एक निहायत ज़रूरी खत ताबड़तोड़ गवर्नर-जनरल को कलकत्ते रवाना कर दिया । चौधरी को निराशा चौधरी की दौड़-धूप कारगर नहीं हुई। दिल्ली में रहते अब उन्हें दो बरस बीत चुके थे। बादशाह सलामत से मिलने के भी उन्होंने बहुत जोड़-तोड़ मिलाए–पर बादशाह शाह-आलम बीमार थे । मुलाक़ात न हो सकी। इसी वीच बादशाह शाह-आलम का देहान्त हो गया । और १४३
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