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नवाब साहब, कुछ तो चेतो, आप कौम और वतन से गद्दारी कर रहे हैं। "बस कलकत्ते से हुक्म आया कि खत्म ।" "कैसा हुक्म ?" "कि हम रुहेले अंग्रेजों के ज़ेर साए रहेंगे । मराठों से नहीं मिलेंगे। सब रुहेलों के सरदार बब्बू खाँ, बस ऊधो का लेन न माधो का देन ।" "अंग्रेज़ इसके बदले क्या देंगे ?" "वही, जो आप देने का वादा करते हैं। फ़र्क इतना ही है कि आप पांच हजार फौज चाहते हैं, अंग्रेज़ कुछ नहीं चाहते।" "लेकिन मराठे आप के मुल्क के बाशिन्दे हैं।" "हमें इससे क्या ? हमारे लिए तो अंग्रेज़ी अमल ही ठीक है।' बादशाह सलामत ने भी अपना तख्तोताज उन्हें नज़र कर दिया है।" "नवाब साहब, कुछ तो चेतो, आप कौम और वतन से गद्दारी कर १३०