था। अब इस संधि का भंग होने पर सम्पूर्ण राजपूत रियासतें अंग्रेजी सरकार की सामन्त बन गई हैं। राजपूतों की परस्पर की फूट ने हमें बहुत मदद पहुंचाई है । और सब से बड़ा काम टाड की वह पुस्तक कर रही है जो वह 'टाड राजस्थान” के नाम से लिख रहा है।" "जनरल महोदय, तब तो टाड अंग्रेज़ कौम की भारी सेवा कर रहा है । मैं चाहता हूँ कि एक खत लिख कर उसका अभिनन्दन करूँ।" "ज़रूर करो, और मेरी ओर से भी उसे मुबारकबाद दो। और लिख दो कि नक्शे को फिर से संशोधित करके भेजे । किताब को भी जल्द खत्म करें। अब हमारी आखिरी फतह का दारोमदार उसी के इन दोनों कामों पर ही है । कल बादशाह का दरबार है । और अब वक्त आ गया है कि हम उस पर साफ-साफ प्रकट कर दें कि वह अब कम्पनी सरकार का पेन्शनयाप्ता है। शहनशाहे हिन्द नहीं। इसलिए अब हम सब ऊपरी आदाब अलकाब और दरबारी कायदे हटा देना चाहते हैं । कल के दरबार में बादशाह को न नज़र पेश की जायगी, न खरीते में अब गवर्नर जनरल अपने को उसका 'फिदबीए खास' कहेगा न लिखेगा। इसके अलावा मैं दरबार में कुर्सी पर बैठ कर बादशाह से मुलाक़ात करूँगा। यह तुम खुद बादशाह से मिल कर दरबार से पेश्तर सब तय कर लेना कर्नल ।" "लेकिन जनरल महोदय, यह क्या वक्त से पहले हमारा क़दम न होगा ? आप तो जानते ही हैं कि बादशाह कम से कम हम को पसन्द करता है । क्योंकि वह जानता है कि अब हमारे चंगुल में फंसकर उस की सल्तनत कभी उसके हाथों में नहीं जा सकती।" “यह ठीक हैं। पर हमने बहुत दिनों से बादशाह के अधिकारों को नहीं माना है, जब तक हमें फ़ायदा दीखा-ऊपरी तौर पर हम बादशाह का अदब-क़ायदा दिखाते रहे । अब हमें बादशाह नाम तक की ज़रूरत नहीं रही है, फिर हम उसे अब एक माकूल रकम पैन्शन में दे रहे हैं, तो यह ज़रूरी है कि अब उस के राजत्व के लक्षण अलग कर दिए जायँ, और सल्तनत की बकाया सालाना आमदनी कम्पनी के अधिकार में रहे ।
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१२७
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