"लेकिन इसका मतलब क्या है ?" "यह, कि जब तक कलकत्ते से हुक्म, आप की जागीर की बहाली का न आ जाए तब तक सब बातें पोशीदा रहना ही मसलहतन ठीक है । भेद खुलने से खेल बिगड़ सकता है।" “खैर, ऐसा है तो कुछ हर्ज नहीं है । हुजूर से मैं बहुत खुश हूँ। बस, सहारनपुर जाने की देर है । वह तोहफ़ा नज़र करूँ, बस समझिए कच्ची अम्बियाँ ! खुदा की क़सम हुजूर ।” कर्नल हँसा । हँस कर बोला- "अम्बियाँ तो खट्टी होती हैं नवाब । खैर, तो खुदा हाफ़िज़।" कर्नल ने हाथ बढ़ाया। नवाब ने पीछे खड़े अंग्रेज़ अफ़सरों की ओर कनखियों से देखा। उसकी आँखों में भय व्याप गया। वह कहना चाहता था कि ये दोनों सफेद भेड़िये उसे एक कुत्ते से ज्यादा नहीं समझते । पर उसके मुंह से बात नहीं निकली। नवाब दोनों अंग्रेजों के साथ बाहर चला गया। कर्नल के चेहरे का कोमल भाव तत्काल लुप्त हो गया। उसने रूखे स्वर में कहा- महफ़िल बर्खास्त । तुरन्त साज़िन्दे-रण्डियाँ-दरबारी रुखसत हो गए। क्षण भर में सन्नाटा हो गया । इसी समय कल्लू ने आकर कान में कहा-“हुजूर, बड़े जनरल साब आए हैं । उन्होंने सलाम दिया है।" कर्नल झपटता हुआ दूसरे कमरे में गया । जो अंग्रेज़ी ढंग से सजा था । वहाँ एक कुर्सी पर हाथ की छड़ी टेके लार्ड लेक बड़े गौर से दीवार पर टंगे हुए भारतवर्ष के नए नक्शे को देख रहे थे। दो सच्चे अंग्रेज़ कर्नल के आने की आहट सुन कर लार्ड लेक ने घूम कर कर्नल का हाथ पकड़ कर कहा--"गुड ईवनिंग कर्नल ! क्या मैं ने तुम्हारी तफ़रीह में खलल डाला?" “ज़रा भी नहीं माई लार्ड, मैं तो बस अब फ़ारिग़ हो कर आप की १२५
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१२२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।