दिन अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव धारण करते गए।
सन् १९१५ के बाद यूरोप के सभी भू-भागों का राष्ट्रीय संगठन हो चुका था। यूनान और बाल्कन तुर्क शासन से मुक्त हो चुके थे । इटली भी स्वतन्त्र हो गया था। जर्मन-भाषा-भाषी भू-भाग जर्मन साम्राज्य के नाम से संगठित हो चुका था। यद्यपि रूस और ब्रिटेन का उसे पूरा सहयोग था, पर ये दोनों देश एशिया को घेर रहे थे। उस समय रूस प्रशान्त में पैर बढ़ा रहा था और ब्रिटेन भारत में । रूस की आवश्य- कताएँ बहुत थीं और उसे निष्कंटक जल-मार्ग प्राप्त नहीं थे । इस लिए ब्रिटेन की संतुलन-नीति उसके विपरीत पड़ने लगी। उसने तुकी की केन्द्रीय शक्ति को नष्ट करना चाहा, फिर अफ़गानिस्तान पर हाथ रखा, पर ब्रिटेन चौकन्ना था। उसने दोनों को संरक्षण दिया और जापान से दोस्ती गाँठी और उसे रूस से भिड़ा दिया। रूस जापान से परास्त हुआ । इस पराजय को सारे एशिया ने आश्चर्य से देखा । परन्तु इसी समय जर्मनी ने पैर निकाले । जर्मनी श्रमिकों का देश था। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में वह शीघ्र ही ब्रिटेन को ललकारने लगा। इस समय भी ब्रिटेन यूरोप का नेता बना हुआ था। वह जर्मनी की शक्ति तोड़ने की ताक में था।
और अन्त में इन्हीं सब कारणों से, १६१४ में प्रथम यूरोपीय महायुद्ध छिड़ गया । यह युद्ध मानव इतिहास में पिछले सब युद्धों से अनोखा युद्ध था। पिछले युद्धों में सेनाएँ लड़ा करती थीं, और जनता को केवल युद्ध- व्यय का भार ही सहन करना पड़ता था। पर इस युद्ध में प्रथम बार लड़ने वाले राष्ट्रों के सब वयस्क नागरिक स्त्री-पुरुषों को सामरिक सेवा के लिए संगठित होना पड़ा। इस व्यापक, राष्ट्रों के युद्ध का प्रभाव बाहर के उन १५