पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/११२

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वियना नामक एक फैन्च सेनापति के नेतृत्व में अपनी सेना को उसने यूरो- पीयपद्धति पर शिक्षित किया। उसने बादशाह की गर्दन दबोच कर पेशवा के लिए बकीले मुतलक की सनद प्राप्त कर ली, जिसका अभिप्राय यह था कि बादशाह ने पेशवा को दक्षिण का सर्वोच्च अधिकारी स्वीकृत कर लिया। यद्यपि मुग़ल बादशाह की सत्ता नाममात्र की रह गई थी, परन्तु अभी सिक्का देश में उसी के नाम का चलता था। इस समय माधोजी भारतीय राजनीति में सर्वोच्च शिखर पर पहुँच गया था। जब वह शाही सनद पेशवा को भेंट करने गया तब डेरे से दूर ही हाथी से उतर गया । और पेशवा के सामने जाकर नाटकीय ढंग से बग़ल से एक कीमती जूते का जोड़ा निकाल कर पेशवा के पाँव में पहनाते हुए बोला—मेरा पिता श्रीमन्त के दर्बार में स्वर्गवासी श्रीमन्त पेशवा को जूता पहनाने की नौकरी करता था, यही काम मेरा भी होगा। पेशवा इससे प्रसन्न हो गया । और माधोजी ने पूना के शासन पर अपनी सत्ता कायम करने के लिये वहीं डेरा जमा लिया। परन्तु उसकी आयु ने साथ नहीं दिया, शीघ्र ही रहस्य पूर्ण रीति से वह मरण शरण हुआ। उसके बाद उसके उत्तराधिकारी दौलतराव सिंधिया ने बाजीराव पेशवा से साँठ-गाठ कर पेशवा के योग्य मन्त्री नाना फड़नवीस को कैद करा दिया। और पेशवा राज्य की सारी शक्ति हाथ में ले पूना में अंधेर- गर्दी मचा दी। जिससे इस महाग्रह से पिण्ड छुड़ाने को बाजीराव भी व्यग्र हो गया। उधर अवसर पाकर अंग्रेजों ने पेशवा को मायाजाल में फाँस लिया । मराठा-मण्डल में फूट डाल दी। होल्कर को सिंधिया प्रदेश में लूट-मार करने को प्रोत्साहित किया। होल्कर के आक्रमण से पेशवा बाजीराव और सिंधिया दोनों थर्रा उठे । पेशवा अंग्रेज़ों के शरणपन्न हुआ, जिसकी वेल्ज़ली राह देख रहा था। उसने पेशवा को अंग्रेज़ी जहाज़ में बैठा कर वसीन के बन्दरगाह में ला उतारा, जहाँ उसने वह स्वतन्त्रता अंग्रेजों के हवाले कर दी, जो दो सौ वर्ष पूर्व शिवाजी ने अर्जित की थी। अंग्रेजों ने उसे फिर से पूना की गद्दी पर बैठाया । पर अब उसके चारों