पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१०५

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सी सैनिक पेशेवर टुकड़ियाँ हैं, जो केवल तनख्वाह के लालच से किसी भी राज्य के विरुद्ध किसी भी राज्य के पक्ष में लड़ सकती हैं। भले ही उन्हें तनख्वाह देने वाला देशी हो या विदेशी। जिससे वे तनख्वाह लेते हैं-उसके लिए वीरता पूर्वक प्राणान्त-युद्ध करना वे अपना धर्म समझते हैं। वे इसे नमकहलाली के नाम से पुकारते हैं। नमकहलाली की यह भावना उनके मन में इस प्रकार दृढ़बद्ध हो चुकी है कि यहाँ भारत में नमकहराम होना सब से बड़ी गाली समझी जाती है।" इतना कह कर लार्ड लेक खिलखिला कर हँस पड़े । मेजर फ्रेजर भी देर तक हंसते रहे। फिर उन्होंने कहा-"निस्संदेह यह एक निराला अहमक़पन है।" "इसी से तो हम भारतीयों को, भारतीयों के द्वारा ही जीतते चले जाते हैं । तिस पर तुर्रा यह, कि न तो इस काम में अंग्रेज़ों का खून बहता है, न ब्रिटेन को कुछ खर्च करना पड़ता है, न कोई हानि सहनी पड़ती है। जैसे नेपोलियन को यूरोप में कोई आर्थिक कठिनाई नहीं उपस्थित होती, क्योंकि वह जिन्हें हराता है उन्हीं के मत्थे उन्हें हराने का खर्चा डालता है। इसी प्रकार हम भारत में कर रहे हैं । अपनी विजयों का सारा खर्चा भारत ही से वसूल कर रहे हैं। इसमें हमें सख्ती करनी पड़ती है, परन्तु लाचारी है । रुपए के बिना काम नहीं चल सकता।" "खैर, तो अंग्रेज़ों के द्वारा भारत की भूमि पर अधिकार कर लेना वास्तव में मुग़लों के बाद की एक राज्य-क्रान्ति है ।" 'वही बात है । और यह राज्य-क्रान्ति मुग़ल साम्राज्य के पतन के कारण औरंगजेब की मृत्यु के बाद ही से प्रारम्भ हुई थी। इतने बड़े देश पर से साम्राज्य का अधिकार उठ गया तो छोटी-छोटी शक्तियों ने अपने सिर उठाए । जिसमें बहुत-सी वैतनिक सैनिकों के दलों के रूप में थीं। जिनका नायकत्व या तो पतनशील साम्राज्य का कोई प्रादेशिक शासक होता था, या कोई दूसरा ही साहसिक व्यक्ति, उनका नायक बन बैठता था। इन सब की शक्ति वेतनभोगी सैनिकों के बल पर थी। और वे सब १०८