और उद्योग से, अंग्रेज़ सब यूरोपियन देशों से बाजी मार ले गए। इस समय अंग्रेज़ सरदारों और मध्यम वर्ग के लोगों ने जो राजा पर अंकुश लगा कर पार्लमेंट की स्थापना कर ली थी, उस से इस प्रौद्योगिक क्रान्ति के पर लग गए थे। इस के बाद सोलहवीं शताब्दी में इंगलैण्ड ने मार्टिन लूथर का पंथ स्वीकार कर पोप के धार्मिक प्रभुत्व का अन्त कर दिया । सत्रहवीं शताब्दी में इंगलैण्ड के मध्यम वर्ग में और भी जागृति हुई। बढ़ते हुए मध्यम वर्ग ने अपनी बात पर आड़ लगाने के अपराध में अपने बादशाह चाल्र्स का सिर काट लिया। उन के नेता हृढ-निश्चयी कामवेल के सामने यूरोप भर के राजाओं ने विद्रोह किया, पर बेकार। इस के बाद तो राजा के अधिकार कम होते ही गए और मध्यम वर्ग पनपता गया। फिर भी अंग्रेज़ों ने प्रजातन्त्र की स्थापना नहीं की, क्योंकि उस का जाल यूरोप के दूसरे देशों में फैल गया था। इन देशों के राजाओं से पत्र-व्यवहार करने और विजित देशों पर निरंकुश शासन की आड़ में निर्द्वन्द्व हो कर उनका लोहू चूसने के लिए 'राजा' नामक एक खिलौने की उन्हें बड़ी आवश्यकता थी। इसी से उन्होंने अपनी राज सत्ता को कायम रखा । जब कभी पार्लमेण्ट ग़लती करके कोई संकट खड़ा कर देती, तो यह खिलौना राजा उस से बच निकलने में अंग्रेजों की मदद करता था। इस प्रकार अंग्रेज़ों ने अपनी यह जातीय नीति बना ली--कि चाहे राज- सत्ता हो चाहे धर्म सत्ता, जब उस से लाभ उठाने का अवसर मिले लाभ उठा लेना; जब वह राह का रोड़ा बने, उसे ठोकर लगा देना । अंग्रेजों की यह नीति भारत ही में नहीं, यूरोप के अन्य देशों के मध्यम वर्ग पर विजय पाने में भी बड़ी सहायक हुई । स्पेन और पुर्तगाल पोप के फेर में पड़ कर धर्मान्ध बने रहे, और पूर्व तथा पश्चिम में भी अपना महत्व खो बैठे । फ्रांस की रक्त-क्रान्ति ने भी उलझनें पैदा कर के अंग्रेज़ों को यूरोप के सारे देशों से आगे निकाल दिया। उन्होंने समुद्र पर एकाधिपत्य क़ायम कर लिया और सारे यूरोप के राष्ट्रों से उस ने युद्ध ठान दिए । और वे लहरों के स्वामी हो बैठे। १३
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।