कालिख मुंह मे लग ही गयी। अब चाहे सिर पर जो कुछ पड़े मगर उस घर मे न जाऊंगी।
यह कहते-कहते सुमन की आंखें भर आई। भोली ने दिलासा देकर कहा, अच्छा पहले हाथ-मुंह धो डालो, कुछ नाश्ता कर लो, फिर सलाह होगी। मालूम होता है कि तुम्हें रातभर नींद नही आई।
सुमन—यहाँ पानी मिल जायगा?
भोली ने मुस्कराकर कहा, सब इन्तजाम हो जायगा। मेरा कहार हिन्दु है। यहाँ कितने ही हिन्दु आया करते है। उनके लिए एक हिन्दु कहार रख लिया है।
भोली की बूढी मामा सुमन को गुसलखाने मे ले गई। वहाँ उसने साबुनसे स्नान किया। तब मामा ने उसके बाल गूथे। एक नई रेशमी साडी़ पहिनने के लिए लाई। सुमन जब ऊपर आई और भोली ने उसे देखा तो मुस्कुराकर बोली, जरा जाकर आईने मे मुँह देख लो।
सुमन शीशे के सामने गई। उसे मालूम हुआ कि सौन्दर्य की मूर्ति सामने खडी़ है। सुमन अपने को कभी इतना सुन्दर न समझती थी। लज्जायुक्त अभिमान से मुख-कमल खिल उठा और आँखों में नशा छा गया। वह एक कोच पर लेट गई।
भोलो ने अपनी मामा से कहा-—क्यो जहूरन, अब तो सेठजी आ जायगे पंजेमे?
जहूरन बोली, तलुवे सुहलायेगे--तलुवे।
थोडे़ देर में कहार मिठाइयाँ लाया। सुमन ने जलपान किया, पान खाया और फिर आइने के सामने खडी़ हो गई। उसने अपने मन में कहा, यह सुख छोड़कर उस अन्धेरी कोठरी में क्यो रहूँ?
भोली ने पूछा, गजाधर शायद मुझसे तुम्हारे बारे में कुछ पूछे तो क्या कह दूँगी?
सुमन ने कहा, कहला देना कि यहाँ नही है।
भोली का मनोरथ पूरा हो गया। उसे निश्चय हो गया कि सेठ