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सेवासदन
 


भोली-जरा मेरे सामने तो ताको। हाँँ, चेहरा साफ कह रही है। क्या बात हुई?

सुमन--सच कहती हूँ कोई बात नही है। अगर अपने रहने से किसी को कोई तकलीफ हो तो क्यों रहे।

भोली-अरे तो मुझ से साफ-साफ कहती क्यों नही, किस बातपर बिगड़े है?

सुमन--बिगड़ने की बात नही है। जब बिगड़ ही गये तो क्या रह गया?

भोली--तुम लाख छिपाओ मैं ताड़ गई सुमन, बुरा न मानो तो कह दूँ। मैं जानती थी कि कभी-न-कभी तुमसे खटकेगी जरूर। एक गाडी़ में कहीं अरबी घोडी़ और लद्द टटटू जुत सकते है? तुम्हें तो किसी बड़े घर की रानी बनना चाहिए था। मगर पाले पडी़ एक खूसट के, जो तुम्हारा पैर धोने लायक भी नहीं। तुम्हीं हो कि यों निबाह रही हो, दूसरी होती तो ऐसे मियाँपर लात मारकर कभी की चली गई होती। अगर अल्लाहताला ने तुम्हारी शक्ल सूरत मुझे दी होती तो मैंंने अब तक सोने की दीवार ख़डी कर ली होती, मगर मालूम नहीं, तुम्हारी तबीयत कैसी है। तुमने शायद अच्छी तालीम नही पाई।

सुमन--मैं दो साल तक एक ईसाई लेडी से पढ़ चुकी हूँँ।

भोली--दो तीन साल की ओर कसर रह गई। इतने दिन और पढ़ लेती तो फिर यह ताक न लगी रहती। मालूम हो जाता कि हमारी जिन्दगी का क्या मकसद है, हमें जिन्दगी का लुत्फ कैसे उठाना चाहिए। हम कोई भेड़ बकरी तो है नहीं कि माँ-बाप जिसके गले मढ़ दें बस उसी की हो रहे। अगर अल्लाह को मंजूर होता कि तुम मुसीबतें झेलो तो तुम्हें परियों की सूरत क्यों देता? यह बेहूदा रिवाज यहीं के लोगो में है कि औरत को इतना जलील समझते है, नहीं तो और सब मुल्कों में औरतें आजाद है अपनी पसन्द से शादी करती है और जब उससे रास नही आती