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सेवासदन
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है। वकील साहब कितने सज्जन आदमी है, लेकिन आज वह भोलीबाई पर कैसे लट्टू हो रहे थे?

इस तरह सोचते हुए वह उठी कि किवाड़ खटखटाऊँ जो कुछ होना है हो जाय। ऐसा कौन सा सुख भोग रही हूँ जिसके लिए यह आपत्ति सहूँ? यह मुझे कौर सोने के कौन खिला देते है, कौन फूलो की सेज पर सुला देते है। दिन भर छाती फाड़कर काम करती हूं, तब एक रोटी खाती हूँ। उस पर यह धोस, लेकिन गजाधर के डंडे को देखते ही फिर छाती दहल गई। पशु बल ने मनुष्य को परास्त कर दिया।

अक़स्मात् सुमन ने दो कान्स्टेबलो को कन्धे पर लट्ठ रखे आते देखा। अन्धकार मे वह बहुत भयंकर दीख पड़ते थे। सुमन का रक्त सूख गया, कही छिपने की जगह न थी। सोचने लगी कि यदि यही बैठी हूँ तो यह सब अवश्य ही कुछ पूछगे तो क्या उत्तर दूँगी। वह झपटकर उठी और जोर से किवाड़ खटखटाया। चिल्लाकर बोली, दो घड़ी से चिल्ला रही हूँ, सुनते हो नही।

गजाधर चौका। पहली नींद पूरी हो चुकी थी। उठकर किवाड़ खोल दिये। आवाज में कुछ भय था, कुछ घबराहट। सुमन ने कृत्रिम क्रोध स्वर में कहा, वाह रे सोनेवाले! घोड़े बेचकर सोये हो क्या? दो घडी से खड़ी चिल्ला रही हूँ, मिनकते ही नही। ठण्ड के मारे हाथ-पांव अकड़ गये।

गजाधर निशक होकर बोला, मुझसे उडो़ मत, बताओ सारी रात कहाँ रही?

सुमन निर्भय होकर बोली, कैसी रात नौ बजे सुभद्रा देवी के घर गई थी। दावत का बुलावा आया था। दस बजे उनके यहाँ से लोट आई। दो घण्टे से तुम्हारे द्वार पर खड़ी चिल्ला रही हूँ। बारह बजे होगे तुम्हे अपनी नींद में कुछ सुधि भी रहती है?

गजाधर—तुम दस बजे आई थी?

सुमन ने दृढ़ता से कहा, हाँ, हॉ, दस बजे।