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सेवासदन
 


उसे धीरे-धीरे ज्ञान होने लगा कि सुमन के सारे रोग अपवित्र वायु के कारण है। कहा तो उस चिकके पास खडे होने से मना किया करता था, मेलो में जाने और गंगा स्नान करने से रोकता था, कहाँ अब स्वंय चिक उठा देता और सुमन को गंगा स्नान करने के लिए ताकीद करता। उसके आग्रह से सुमन कई दिन लगातार स्नान करने गई और उसे अनुभव हुआ कि मेरा जो कुछ हल्का हो रहा है। फिर तो वह नियमित रूप से नहाने लगी। मुरझाया हुआ पौधा पानी पाकर फिर लहलहाने लगा।

माघ का महीना था। एक दिन सुमन की कई पडोसिनें भी उसके साथ नहाने चली। मार्ग में, वनो-बाग पड़ता था। उसमें नाना प्रकार के जीव-जन्तु पले हुए थे। पक्षियों के लिए लोहे के पतले तारो से एक विशाल गुम्बद बनाया गया था । लोटती बार सबकी सलाह हुई कि बाग की सैर करनी चाहिए। सुमन तत्काल ही लौट आया करती थी, पर आज सहेलियो के आग्रह से उसे भी बाग में जाना पड़ा। सुमन बहुत देर तक वहाँ के अद्भूत जोववारियो को देखतो रही। अन्त को वह थककर एक। बेंच पर बैठ गयी। सहसा उसके कान मे आवाज आई, अरे यह कौन औरत बेंचपर बैठी है? उठ वहाँ से। क्या सरकार ने तेरे ही लिए बेंच रख दी है?

सुमन ने पोछे फिरकर कातर नेत्रो से देखा। बाग का रक्षक खडा डाँट बता रहा था।

सुमन लज्जित होकर बेंच पर से उठ गई और इस अपमान को भुलाने के लिए चिड़ियो को देखने लगी। मन में पछता रही थी कि कहाँ से में इस बेंच पर बैठी। इतने में एक किराये की गाड़ी आकर चिड़ियाघर के सामने रुकी। बाग के रक्षक ने दौड़कर गाडी़ के पट खोले। दो महिलाएँ उतर पड़ी। उनमे से एक वही सुमन की पडो़सिन भोली थी। सुमन एक पेड़ की आढ में छिप गई और वह नो स्त्रियाँ बाग की सैर करने लगी। उन्होने बन्दरो को चने खिलाये चिड़िवो को दाने चुगाये कछुए की पीठपर खडी हुई, फिर सरोवर में मछलियो को देखने चली गयीं। रक्षक उनके पीछे-पीछे सेवकों की भांति चल रहा था। वे सरोवर के किनारे मछलियो को कीडा़ देख रही