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सेवासदन
 

सुभद्रा - नहीं, अबकी एतवारको मैं उन्हें अवश्य खीच लाऊँगी, बस, मैं लड़कियोको पान लगाना और खाना सिखाया, करुँगी।

सुमन- (हँसकर) इस काममे आप कितनी ही लडकियों को अपने- से भी निपुण पावेगी।

इतनेमे १० लडकियाँ सुन्दर वस्त्र पहने हुए आई और सुभद्रा के सामने खडी होकर मधुर स्वरसे गाने लगी :

हे जगत पिता, जगत प्रभू,
मुझे अपना प्रेम और प्यार दे।
तेरी भक्तिमे लगे मन मेरा,
विषय कामनाको विसार दे।

सुभद्रा यह गीत सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और लडकियोंको ५) इनाम दिया।

जब वह चलने लगे तो सुमनने करुण स्वरसे कहा--मै इसी रवि वारको आपकी राह देखुँगी।

सुभद्रा--- मैं अवश्य आऊँगी।

सुमन---शान्ता तो कुशलसे है।

सुभद्रा---हाँ पत्र आया था। सदन तो यहाँ नही आए?

सुमन---नही,पर २) मासिक चन्दा भेज दिया करते है।

सुभद्रा---अब आप बैठिये मुझे,आज्ञा दीजिए।

सुमन---आपके आनेसे मैं कृतार्थ हो गई। आपकी भक्ति, आपका प्रेम,आपकी कार्यकुशलता, किस-किसको वडाई करूँ। आप वास्तवमे स्त्री समाजका श्रृंगार है (सजल नेत्रोंसे) में तो अपनेको आपकीदासी समझती हूँ। जबतक जीउँगी आप लोगोका यश मानती रहूंगी। मेरी बाँह पकडी और मुझे डूबनेसे बचा लिया। परमात्मा आप लोगोंका सदैव कल्याण करें।