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सेवासदन
 


चाहते थे, वह उनको इस अज्ञानावस्था से मुक्त किया चाहते थे, पर माया जाल इतना दृढ़ था और अज्ञानबन्धन इतना पुष्ट तथा निद्रा इतनी गहरी थी कि पहले छः महीनो में उससे अधिक सफलता न हो सकी, जिसका ऊपर वर्णन किया जा चुका है। शराब के नशे में मनुष्य की जो दशा हो जाती है वही दशा इन वेश्याओं की हो गयी थी।

उधर प्रभाकरराव और उनके मित्रों ने उस प्रस्ताव के शेष भागों के फिर बोर्ड में उपस्थित किया। उन्होंने केवल पद्मसिंह से द्वेष हो जाने के कारण उन मन्तव्यों का विरोध किया था, पर अब पद्मसिंह का वेश्यानुराग देखकर वह उन्हीं के बनाये हुए हथियारों से उनपर आघात कर बैठे। पझसिंह उस दिन बोर्ड नहीं गये, डाक्टर श्यामाचरण नैनीताल गये हुए थे, अतएव ने दोनों मन्तव्य निर्विघ्न पास हो गये।

बोर्ड की ओर से अलईपुर के निकट वेश्याओं के लिये मकान बनाये जा रहे थे। लाला भगतराम दत्तचित्त होकर काम कर रहे थे। कुछ कच्चे घर थे, कुछ पक्के, कुछ दुमजल, एक छोटा-सा बाजार, एक छोटा-सा औपवालय और एक पाठशाला भी बनाई जा रही थी। हाजी हाविम ने एक मसजिद बनवानी आरभ की थी और सेठ चिम्मनलाल की ओर से एक मन्दिर बन रहा था। दीनानाथ तिवारी ने एक बाग की नीबडाल दी थी। आशा तो थी कि नियत समय के अन्दर भगतराम काम समाप्त कर देगें, मिस्टर दत्त और पंडित प्रभाकरराव तथा मिस्टर शाकिर बेग उन्हें चैन न लेने देते थे। लेकिन काम बहुत था, और बहुत जल्दी करने पर भी एक साल लग गया। बस इसी की देर थी। दूसरे ही दिन वेश्याओं को दालमण्डी छोड़कर इन नये मकानो में आबाद होने का नोटिस दे दिया गया।

लोगों को शंका थी कि वेश्याओं की ओर से इसका विरोध होगा पर उन्हें यह देखकर आमोदपूर्ण आश्चर्य हुआ कि वेश्याओं ने प्रसन्नतापूर्वक इस आज्ञा का पालन किया। सारी दालमण्डी एक दिन में खाली हो गई। जहाँ निशिबासर एक श्री-सी बरसती थी वहाँ सन्ध्या होते सन्नाटा छा गया?