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सेवासदन
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हम लोगों को निर्दोष समझे, लेकिन जनता सदन में और हम में कोई भेद नहीं कर सकती, तो इससे क्या फायदा कि साँप भी न मरे और लाठी भी टूट जाय। एक ओर दो बुराइयाँ है, बदनामी भी होती है और लड़का भी हाथ से जाता है। दूसरी ओर एक ही बुराई है, बदनामी होगी, लेकिन लड़का अपने हाथ में रहेगा। इसलिए मुझे तो यही उचित जान पड़ता है। कि हमलोग सदन को समझाने और यदि वह किसी तरह न माने तो .....

मदनसिंह ने बात काटकर कहा, तो उस चुड़ैल से उसका विवाह ठान दे? क्यों यही न कहना चाहते हो? यह मुझसे न होगा। एकबार नहीं, हजार बार नहीं।

यह कहकर वह चुप हो गये। एक क्षण के बाद पद्मसिंह को लांछित कर के बोले, आश्चर्य यह है कि यह सब कुछ तुम्हारे सामने हुआ और तुम्हें जरा भी खबर न हुई। उसने नाव ली, झोपड़ा बनाया, दोनों चुड़ैलो से साँठ गाँठ की और तुम आँखे बन्द किये बैठे रहे। मैंने तो उसे तुम्हारे ही भरोसे भेजा था। यह क्या जानता था कि तुम कान में तेल डाले बैठे रहते हो। अगर तुमने जरा भी चतुराई से काम लिया होता तो यह नौबत न आती। तुमने इन बातों की सूचना तक मुझे न दी नहीं तो मैं स्वयं जाकर उसे किसी उपाय से बचा लाता। अब जब सारी गोटियाँ पिट गई, सारा खेल बिगड़ गया तो चले हो वहाँ से मुझसे सलाह लेने। मैं साफ-साफ कहता हूँ कि तुम्हारी आनाकानी से मुझे तुम्हारे ऊपर भी सन्देह होता है। तुमने जान-बूझकर उसे आग मे गिरने दिया। मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुराईयाँ की थी, उनका तुमने बदला लिया खैर; कल प्रात काल एक दान-पत्र लिख दो। तीन पाई जो मौरूसी जमीन है। उसे छोड़कर में अपनी सब जायदाद कृष्णार्पण करता हूँ। यहाँ न लिख सको तो वहाँ से लिखकर भेज देना। मैं दस्तखत कर दूँगा और उसकी रजिस्ट्री हो जायगी।

यह कहकर मदनसिंह सोने चले गये। लेकिन पद्मसिंह के मर्म-स्थान पर ऐसा बार कर गये कि वह रातभर तड़पते रहे। जिस अपराघ से बचने के