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सेवासदन
 

सुभद्रा -वह तुम्हारे पीछे इस तरह क्यों पड़ा हुआ है?

यह कहकर सुभद्रा वह लेख पढ़ने लगी और पाँच मिनट में उसने उसे आद्योपान्त पढ़ डाला।

पद्म--कैसा लेख है?

सुभद्रा—यह लेख थोड़े ही है, यह तो खुली हुई गालियाँ हैं। मैं समझती थी कि गालियों की लड़ाई स्त्रियों में ही होती है, लेकिन देखती हूँ तो पुरुष हम लोगो में भी बढ़े हुए है। ये विद्वान् भी होगे?

पद्म-हाँ, विद्वान् क्यों नहीं है, दुनिया भर की किताबे चाटे बैठे है।

सुभद्रा-और उस पर यह हाल।

पद्म—मैं इसका उत्तर लिख रहा हूँ, ऐसी खबर लूँगा कि वह भी याद करें कि किसीसे पाला पड़ा था।

सुभद्रा-—मगर गालियों का क्या उत्तर होगा?

पद्म -गालियाँ।

सुभद्रा—नहीं, गालियों का उत्तर मौन है। गालियों का उत्तर गाली तो मूर्ख भी देते हैं, फिर उनमें और तुममें अन्तर ही क्या है?

पद्मसिंह ने सुभद्रा को श्रद्धापूर्ण नेत्रों से देखा। उसकी बात उनके मन से बैठ गई। कभी-कभी हमें उन लोगों से भी शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमान वश अज्ञानी समझते है।

पद्म-- तो मौन धारण कर लूँ?

सुभद्रा--मेरी तो यही सलाह है। उसे जो जी में आये बकने दो। कभी-न-कभी वह अवश्य लज्जित होगा। बस वही इन गालियों का दंड होगा।

पद्म-—यह लज्जित कभी न होगा, ये लोग लज्जित होना जानते ही नहीं। अभी मैं उनके पास जाऊँ तो मेरा बड़ा आदर करेगा, हंस-हंसकर बोलेगा, लेकिन सन्ध्या होते ही फिर उन पर गालियों का नशा चढ़ जाएगा।

सुभद्रा -तो उसका उद्यम गया दूसरों पर आक्षेप करना ही है।