ईश्वर के यहाँ क्या जवाब देंगे? जान्हवी को तो उन्होंने कुछ न कहा पर निश्चय किया कि शीघ्र ही इस अत्याचार का अन्त करना चाहिये। मृतक संस्कारो से निवृत होकर उमानाथ आजकल मदनसिंह पर मुकद्दमा दायर करने का कार्यवाही में मग्न थे। वकीलो ने उन्हें विश्वास दिलाया था कि तुम्हारी अवश्य विजय होगी। पांच हजार रुपये मिल जाने से मेरा कितना कल्याण होगा, यह कल्याण कामना उमानाथ को आनन्दोन्मत्त कर देती थी, इस कल्पना ने उनकी शुभाकांक्षाओं को जागृत कर दिया था। नया कर बनाने के मन्सूबे होने लगे थे। उस घर का चित हृदयपट पर खिंच गया था। उसके लिये उर्पयुक्त स्थान की बातचीत शुरू हो गयी थी। इन आनन्दकल्पनाओं में शांता को सुधि ही न रही थी जान्हवी के इस अत्याचार ने उनको शान्ता की ओर आकर्षित किया। गजाधर के दिये हुए सहस्त्र रुपये जो उन्होंने मुकदमें के खर्च के लिये अलग रख दिये ये घरों मौजूद थे एक दिन जाहन्वी से उन्होंने इस विषय में कुछ बातचीत की। कही एक सुयोग्य वर मिलने की आशा थी। शान्ता ने यह बात सुनी। मुकद्दमे की
बातचीत सुनकर भी उसे दुख होता था, पर वह उसमें दखल देना उचित समझती थी। लेकिन विवाह की बातचीत सुनकर वह चुप न रह सकी। एक प्रबल प्रेरक शक्ति ने उसकी लज्जा और संकोच को हटा दिया ज्योंही उमानाथ चले, वह जान्हवी के पास आकर बोली, मामा अभी तुमसे क्या कह रहे थे? जान्हवी ने असंतोष भाव से उत्तर दिया, कह क्या रहे थे, अपना दु:ख रो रहे थे। अभागिनी सुमन ने यह सब कुछ किया नहीं तो यह दोहरकम्मा क्यों करना पड़ता? अब न उतना उत्तम कुल ही मिलता है, न वैसा सुन्दर वर। थोडी दूर पर एक गांव है। वहीं एक वर देखने गये थे। शान्ता ने भूमि की ओर ताकते हुए उत्तर दिया, क्या मैं तुम्हें इतना कष्ट देती हूँ कि मुझे फेंकने की पड़ी हुई है? तुम मामा से कह दो कि मेरे लिए कष्ट न उठावें।
जान्हवी-तुम उनकी प्यारी भांजी हो, उनसे तुम्हारा दुःख नहीं देना जाता। मैंने भी तो यही कहा था कि अभी रहने दो। जब मुकदमे का