यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२३८
सेवासदन
 

३९

प्रातःकाल यह शोक समाचार अमोला में फैल गया इने गिने सज्जनों को छोड़कर कोई भी उमानाथ के द्वार पर समवेदना प्रकट करने न आया! स्वाभाविक मृत्यु हुई होती तो संभवत: उनके शत्रु भी आकर चार आँसू बहा जाते, पर आत्मघात एक भयंकर समस्या है, यहां पुलिस का अधिकार है, इस अवसर पर मित्रदल ने भी शत्रुवत् व्यवहार किया।

उमानाथ से गजाधर ने जिस समय समाचार कहा, उस समय वह कुएँ पर नहा रहे थे। उन्हें लेशमात्र भी दुख व कुतूहल नहीं हुआ। इसके प्रतिकूल उन्हें कृष्णचन्द्र पर क्रोध आया, पुलिस के हथकडों की शंका ने शोक को भी दबा दिया। उन्हें स्नान-ध्यान में उस दिन बड़ा विलंब हुआ। संदिग्ध चित्त को अपनी परिस्थिति के विचार से अवकाश नहीं मिलता। वह समय ज्ञान रहित हो जाता है।

जान्हवी ने बड़ा हाहाकार मचाया। उसे रोते देखकर उसकी दोनों बेटियाँ भी रोने लगी। पास-पड़ोस की महिलाएं समझाने के लिये आ गई। उन्हें पुलिस का भय नहीं था पर वह आतंनाद शीघ्र ही समाप्त हो गया। कृष्णचन्द्र के गुण-दोष की विवेचना होने लगी। सर्व सम्मति ने स्थिर किया कि उनमें गुण की मात्रा दोष से बहुत अधिक थी। दोपहर को जब उमानाथ घर में शर्बत पीने आये और कृष्णचन्द्र के सम्बन्ध में कुछ अनुदारता का परिचय दिया तो जान्हवी ने उनकी ओर वक्र नेत्रो से देखकर कहा; कैसी तुच्छ बातें करते हो।

उमानाथ लज्जित हो गये। जान्हवी अपने हार्दिक आनन्द का मुख अकेले उठा रही थी। इस भाव को वह इतना तुच्छ और नीच समझती थी कि उमानाथ भी उसे गुप्त रखना चाहती थी। सच्चा शोक शांता के सिवा और किसी को न हुआ। यद्यपि अपने पिता को यह सामर्थ्य हीन समझती थी, तथापि संसार में उसके जीवन का एक आधार मौजूद था। अपने पिता की हीनावस्था ही उसकी पितृभक्तिका कारण थी, अब वह