दूँगा तो वह खुशी से विवाह करने पर तैयार हो जायगा। जरा इन शिक्षित महात्माओं की कलई तो खुलेगी!
कृष्णचन्द्र ने लंबी सांस लेकर कहा, पहले मुझे विष दे दो, तब यह मुकद्दमा दायर करो।
उमानाथने कुद्ध होकर कहा, आप क्यों इतना डरते है?
कृष्णचन्द्र-मुकदमा दायर करने का निश्चय कर लिया है?
उमा—हाँ, मैने निश्चय कर लिया है। कल सारे शहर के बड़े-बड़े वकील वैरिस्टर जमा थे। यह मुकद्दमा अपने ढंग का निराला है। उन लोगों ने बहुत कुछ देख-भालकर तब यह सलाह दी है। दो वकीलों को बयाना तक दे आया हूँ।
कृष्णचन्द्र ने निराश होकर कहा, अच्छी बात है, दायर कर दो।
उमा---आप इससे असन्तुष्ट क्यों है?
कृष्ण---जब तुम आपही नहीं समझते तो मैं क्या बताऊँ? जो बात अभी दो चार गाँव में फैली है वह सारे शहर में फैल जायगी। सुमन अवश्य ही इजलास पर बुलाई जायगी, मेरा नाम गली-गली बिकेगा।
उमा—अब इससे कहाँ तक डरूँ? मुझे भी अपनी दो लड़कियों का विवाह करना है। यह कलंक अपने माथे लगाकर उनके विवाह में क्यों बाधा डालूँ?
कृष्ण-—तो तुम यह मुकदमा इसलिये दायर करते हो, जिसमें तुम्हारे नामपर कोई कंलक न रहे।
उमानाथ ने सगर्व कहा, हाँ, अगर आप उसका यह अर्थ लगाते है तो यही सही। बारात मेरे द्वार से लौटी है, लोगों को भ्रम हो रहा है कि सुमन मेरी लड़की है। सारे शहर से मेरा ही नाम लिया जा रहा है। मेरा दावा दस हजार का होगा, अगर पाँच हजार की डिगरी हो गयी तो शान्ता का किसी उत्तम कुल में ठिकाना लग जायगा। आप जानते है, जूठी वस्तु को मिठास के लोभ से लोग खाते हैं। जब तक रुपये का लोभ न होगा शान्ता का विवाह कैसे होगा? एक प्रकार से मेरे कुल में भी कलंक लग गया। पहले