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सेवासदन
१७
 


लम्बे तिलककी चुटकी लेते। इसलिए उमानाथ उनके यहाँ बहुत कम आते थे।

लेकिन इस दुर्घटना का समाचार पाकर उमानाथ से न रहा गया। वह आकर अपनी बहन और भांजियों को अपने घर ले गए। कृष्णचन्द्र को सगा भाई न था। चाचा के दो लड़के थे, पर वह अलग रहते थे। उन्होने बात तक न पूछी।

कृष्णचन्द्र ने चलते-चलते गंगाजली को मना किया था कि रामदास के रुपयों में से एक कौडी भी मुकदमे मे न खर्च करना। उन्हें निश्चय था कि मेरी सजा अवश्य होगी। लेकिन गंगाजली का जी न माना। उसने दिल खोलकर रुपये खर्च किए। वकील लोग अन्त समय तक यही कहते रहे कि वे छूट जायेंगे।

जज के फैसले की हाईकोर्ट मे अपील हुई। महन्तजी की सजा मे कमी न हुई। पर कृष्णचन्द्र जी की सजा घट गई। पाँच के चार वर्ष रह गए।

गंगाजली आने को तो मैके आई, पर अपनी भूल पर पछताया करती थी। यह वह मैका न था जहाँ उसने अपनी बालकपन की गुडियाँ खेली थीं, मिट्टी के घरौदे बनाये थे, माता पिताकी गोद मे पली थी। माता पिता का स्वर्गवास हो चुका था, गाँव मे वह आदमी न दिखाई देते थे। यहाँ तक कि पेडो़ की जगह खेत और खेतो की जगह पेड़ लगे हुए थे। वह अपना घर भी मुश्किल से पहचान सकी और सबसे दुःखकी बात यह थी कि वहाँ उसका प्रेम या आदर न था। उसकी भावज जाह्नवी उससे मुंह फुलाये रहती। जाह्नवी अब अपने घर बहुत कम रहती। पड़ोसियो के यहाँ बैठी हुई गंगाजली का दुखडा़ रोया करती। उसके दो लड़कियाँ थीं। वह भी सुमन और शान्ता से दूर-दूर रहतीं।

गंगाजली के पास रामदास के रुपयो मे से कुछ न बचा था। यही चार पाँच सौ रुपये रह गये थे जो उसने पहले काट कपटकर जमा किए थे। इसलिए वह उमानाथ से सुमन के विवाह के विषय में कुछ न कहती। यहाँ