कृष्णचन्द्र-आप बारात क्यों लौटाए लिए जाते हैं ?
मदन—अपना मन ! हमें विवाह नही करना है ।
कृष्ण—आपको विवाह करना होगा । यहाँ आकर आप ऐसे नहीं लौट सकते।
मदन—आपको जो करना हो कीजिये । हम विवाह नही करेंगे।
कृष्ण- कोई कारण?
मदन—कारण क्या आप नही जानते ?
कृष्ण—जानता तो आपसे क्यों पूछता ?
मदन—तो पंडित उमानाथ से पूछिए?
कृष्ण—मैं आपसे पूछता हूं ?
मदन-बात दबी रहने दीजिए। में आपको लज्जित नही करना चाहता ।
कृष्ण-अच्छा, समझा, मैं जेलखाने हो आया हूँ । यह उसका दण्ड है । धन्य है आपका न्याय !
मदन-इस बातपर बारात नही लौट सकती थी।
कृष्ण-तो उमानाथसे विवाहका कर देनेमें कुछ कसर हुई होगी।
मदन-हम इतने नीच नही हैं ।
कृष्ण—फिर ऐसी कौनसी बात है ?
मदन- हम कहते है हममें न पूछिए ।
कृष्ण—आपको बतलाना पड़ेगा । दरवाजेपर बारात लाकर उसे लौटा ले जाना क्या आपने लड़कोका खेल समझा है ? यहाँ खूनकी नदी वह जायगी । आप इस भरोसेमें न रहियेगा ।
मदन—इसकी हमको चिन्ता नही है । हम यहाँ मर जायेंगे, लेकिन आपकी लडकीसे विचाह न करंगे । आपके यह अपनी मर्यादा खोने नहीं देगें।
कृष्ण-तो क्या हम आपसे नीच है ?
मदन-हाँ, आप हमसे नीच है ।