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सेवासदन
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विरुद्ध करने की चेष्टा की। प्रभाकरराव ने विवश नेत्रों से रुस्तम भाई की ओर देखा, मानो उनसे कह रहे थे कि मुझे ये लोग ब्रह्म फाँस में डाल रहे है, आप किसी तरह मेरा उद्धार कीजिये। रुस्तम भाई बड़े निर्भीक, स्पष्टवादी पुरुष थे। वे चिम्मनलाल का उत्तर देने के लिये खड़े हो गये और बोले, मुझे यह देखकर शोक हो रहा है कि आप लोग एक सामाजिक प्रश्न को हिन्दू मुसलमानो के विवाद का स्वरूप दे रहे हैं। सूद के प्रश्न को भी यही रंग देने की चेष्टा की गई थी। ऐसे राष्ट्रीय विषयो को विवादग्रस्त बनाने से कुछ हिन्दू साहूकारों का भला हो जाता है, किन्तु इससे राष्ट्रीयता को जो चोट लगती है उसका अनुमान करना कठिन है। इसमे सन्देह नही कि इस प्रस्ताव के‌ स्वीकृत होने से हिन्दु साहूकारो को अधिक हानि पहुँचेगी, लेकिन, मुसलमानो-पर भी इसका प्रभाव अवश्य पड़ेगा। चौक और दालमंडी मे मुसलमानों की दूकाने कम नहीं है। हमको प्रतिवाद या विरोध के धुन में अपने मुसलमान भाइयों की नीयत की सफाई पर सन्देह न करना चाहिये, उन्होने इस विषय‌ मे जो कुछ निश्चय किया है वह सार्वजनिक उपकार के विचार से किया है; अगर हिन्दुओं को इससे अधिक हानि हो रही है तो यह दूसरी बात है। मुझे विश्वास है कि मुसलमानों की इससे अधिक हानि होती तब भी उनका यही फैसला होता। अगर आप सच्चे हृदय से मानते है कि यह प्रस्ताव एक सामाजिक कुप्रथा के सुधार के लिये उठाया गया है तो आपको उसके स्वीकार करने में कोई बाधा न होनी चाहिये, चाहे धन की कितनी ही हानि हो। आचरण के सामने धन का कोई महत्व न होना चाहिये।

प्रभाकरराव को धैर्य हुआ। बोले, बस यही मैं भी कहने वाला था, अगर थोड़ी सी आर्थिक हानि से एक कुप्रथा का सुधार हो रहा हो तो वह हानि प्रसन्नाता से उठा लेनी चाहिये। आपलोग जानते है कि हमारी गवर्नमेन्ट को चीन देश से अफीम का व्यापार करने में कितना लाभ था। १८ करोड़ से कुछ अधिक ही होगा। पर चीन में अफीम खाने की कुप्रथा मिटाने के लिये सरकार ने इतनी भीषण हानि उठाने में जरा भी आगा-पीछा नहीं किया।

कुँवर अनिरुद्ध सिंह ने प्रभाकरराव की ओर देखते हुए पूछा, महाशय,