डाक्टर श्यामाचरण और कुंवर साहब के विषय में अभी तक कुछ निश्चय नहीं हो सका था। दोनों पक्ष उनसे सहायता की आशा रखते थे। उन्हीं पर दोनों पक्षों की हार-जीत निर्भर थी। पद्मसिंह अभी बारात से नहीं लौटे थे। बलभद्रदास ने इस अवसर को अपने पक्ष मे समर्थन के लिये उपयुक्त समझा और सब हिन्दू मेम्बरों को अपनी सुसज्जित बारहदरी मे निमंत्रित किया, इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि डाक्टर साहब और कुंवर महोदय की सहानुभूति अपने पक्ष में कर ले। प्रभाकरराव मुसलमानों के कट्टर
विरोधी थे। वे लोग इस प्रस्ताव को हिन्दू मुसलिम विवाद का रंग देकर प्रभाकर राव को भो अपनी ओर खीचना चाहते थे।
दीनानाथ तिवारी वोले, हमारे मुसलमान भाइयों ने तो इस विषय में बडी उदारता दिखाई पर इसमें एक गूढ़ रहस्य है। उन्होने 'एक पथ-दो काज' वाली चाल चली है। एक ओर तो समाज सुधार की नेकनामी हाथ आती है दूसरी ओर हिन्दूओं को हानि पहुंचाने का एक बहाना मिलता है। ऐसे अवसर से वे कब चूकने वाले थे।
चिम्मनलाल-मुझे पालिटिक्स से कोई वास्ता नही है और न मैं इसके निकट जाता हूँ। लेकिन मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि हमारे मुसलिम भाइयों ने हमारी गरदन बुरी तरह पकड़ी है। चावलमंडी और चौकके अधिकांश मकान हिन्दुओं के है, यदि वोर्ड ने यह स्वीकार कर लिया तो हिन्दुओं का मटियामेट हो जायगा। छिपे छिपे चोट करना कोई मुसलमानों से सीख ले। अभी बहुत दिन नहीं बीते कि सूद की आड़ में हिन्दुओं पर आक्रमण किया गया था। जब वह चाल पट पड़ गयी तो यह नया उपाय सोचा। खेद है कि हमारे कुछ हिन्दू भाई उनके हाथों की कठपुतली बने हुए है। वे नहीं जानते कि अपने दुरुत्साह से अपनी जाति को कितनी हानि पहुचा रहे है।
स्थानीय कौसिल में जब सूदका प्रस्ताव उपस्थित था तो प्रभाकरराव ने उसका घोर विरोध किया था। चिम्मनलाल ने उसका उल्लेख करके और वर्तमान विषय को आर्थिक दृष्टिकोण से दिखाकर प्रभाकरराव को नियम