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सेवासदन
 


वह दबती है, लेकिन मामी से नहीं दबती और ममेरी वहिनों को तो वह तुरकी वतुरकी जवाब देती है। अब शान्ता वह गाय है जो हत्या भय के बलपर दूसरे का खेत चरती है।

इस तरह एक वर्ष और बीत गया। उमानाथ ने बहुत दौड़धूप की कि उसका विवाह कर दें, लेकिन जैसा सस्ता सौदा वह करना चाहते थे, वह-कही ठीक न हुआ। उन्होने थाने, तहसील में जोड़तोड़ लगाकर २००, का चन्दा करा लिया था। मगर इतने सस्ते वर कहाँ? जान्हवी का वश चलता तो वह शान्ता को किसी भिखारी के गले बाँधकर अपना पिण्ड छुड़ा लेती, लेकिन उमानाथ ने अबकी पहली बार उसका विरोध किया और सुयोग्य वर ढूंढते रहे। गंगाजली के बलिदान ने उनकी आत्मा को बलवान बना दिया।

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सार्वजनिक संस्याएँ भी प्रतिभाशाली मनुष्यों की मुहताज होती है। यद्यपि विट्ठलदासके अनुयायियों की कमी न थी, लेकिन उनमें प्राय:सामान्य अवस्था के लोग थे। ऊँची श्रेणी के लोग उनसे दूर भागते थे। पद्मसिंह के सम्मिलित होते ही इस संस्था में जान पड़ गई। नदी की पतली बार उमड़ पडी। बड़े आदमियों मे उनकी चर्चा होने लगी। लोग उनपर कुछ-कुछ विश्वास करने लगे?

पद्मसिंह अकेले न आये। बहुवा किसी काम को अच्छा समझकर भी हम उसमें हाथ लगाते हुए डरते है, नक्कू बन जाने का भय लगा रहता है। हम बड़े आदमियों के आ मिलने की राह देखा करते है। ज्योंही किसी ने रास्ता खोला, हमारी हिम्मत बँध जाती है, हमको हँसी का डर नही रहता। अकेले हम अपने घर में भी डरते हैं, दो होकर जंगलो में भी निर्भय रहते है। प्रोफेसर रमेशदत्त, लाला भगतराम और मिस्टर रुस्तम भाई गुप्तरूप से विट्ठलदासकी सहायता करते रहते थे। अब वह खुले पड़े। सहायकों की संख्या दिनोंदिन बढ़ने लगी।

विट्ठलदास सुधार के विषय में मृदुभाषी बनना अनुचित समझते थे, इसलिए उनकी बात रुचिकर न होती थी, मींठी नीद सोने वालों