उसकी हाँ में हाँ मिला दिया करते। गंगाजली को साफ कपड़े पहनने का क्या अधिकार है? शान्ता का पालन पहले चाहे कितने ही लाड़ प्यार से हुआ हो, अब उसे उमानाथ की लड़कियों से बराबरी करने का क्या अधिकार है? उमानाथ, स्त्री की इन खेपपूर्ण बातों को सुनते और उनका अनुमोदन करते। गंगाजली को जब क्रोध आता तो वह उसे अपने भाई ही पर उतारती। वह समझती थी कि वे अपनी स्त्री को बढ़ावा देकर मेरी दुर्गति करा रहे है। वे अगर उसे डाँट देते तो मजाल थी कि वह यो मेरे पीछे पड़ जाती? उमानाथ को जब अवसर मिलता तो बह गंगाजली को एकान्त में समझा दिया करते। किन्तु एक तो जान्हवी उन्हें ऐसे अवसर मिलने ही न देती, दूसरे गंगाजली को भी उनकी सहानुभूति पर विश्वास न आता।
इस प्रकार एक वर्ष बीत गया। गंगाजली चिन्ता, शोक और निशा से औषधियाँ सेवन कराई लेकिन जब कुछ लाभ न हुआ तो उन्हें चिन्ता हुई। एक रोज उनकी स्त्री किसी पड़ोसी के घर गई हुई थी। उमानाथ बहन के कमरे में गये। वह बेसुध पड़ी हुई थी, बिछावन चिथड़ा हो रहा था। साड़ी फटकर तारतार हो गई थी, शान्ता उसके पास बैठी हुई पंखा झल रही थी। यह करुणाजनक दृश्य देखकर उमानाथ पड़े यही बहन है। जिसकी सेवा के लिए दो दासियाँ लगी हुई थीं, आज उसकी यह दशा हो रही है! उन्हें अपनी दुर्बलता पर अत्यन्त ग्लानि उत्पन्न हुई। गंगाजली के सिरहाने बैठकर रोते हुए बोले, बहन यहां लाकर मन तुम्हें बड़ा कष्ट दिया है। नहीं जानता था कि उसका यह परिणाम होगा। आज किसी वैद्यक ले आता हूँ। ईश्वर चाहेगें तो तुम शीघ्र ही अच्छी हो जाओगी।
इतने में जान्हवी भी आ गई, ये बातें उनके कान में पढ़ी। बोली, हाँ हाँ दौडों, वैद्य को बुनाओ, नहीं तो अनर्थ हो जायगा। अभी पिछले दिनों महीनों ज्वर आता रहा, तब बैद्य के पास न दौड़े। में भी ओढ़कर पड़ रहती तो तुम्हें मालूम होता कि इसे कुछ हुआ है, लेकिन में कैसे पढ़ रहती? घर की चक्की कौन पीसता? मेरे कर्म में क्या सुख भोगना वदा है?