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सेवासदन
 


से जो प्रेम था, उसमें तृष्णा ही का आधिक्य था। सुमन उसके हृदय में रहकर भी उसके जीवन का आधार न बन सकती थी। सदन के पास यदि कुबेर का धन होता तो वह सुमन को अर्पण कर देता। वह अपने जीवन के सम्पूर्ण सुख, उसकी भेंट कर सकता था, किन्तु अपने दुख से, विपत्ति से, कठिनाइयों से नैराश्य से वह उसे दूर रखता था। उसके साथ वह सुख का आनन्द उठा सकता था, लेकिन दु:खका आनन्द नहीं उठा सकता था। सुमन पर उसे वह विश्वास कहाँ था जो प्रेम का प्राण है! अब वह कपट प्रेम के माया-जाल से मुक्त हो जायगा। अब उसे बहुरूप धरने की आवश्यकता नहीं। अब वह प्रेम को यथार्थ रूप में देखेगा और यथार्थ रूप में दिखावेगा। यहाँ उसे वह अमूल्य वस्तु मिलेगी जो सुमन के यहाँँ किसी प्रकार नहीं मिल सकती थी। इन विचारों ने सदन को इस नये प्रेम के लिए लालायित कर दिया। अब उसे केवल यही संशय था कि कही बधू रूपवती न हुई तो? रूप लावण्य प्राकृतिक गुण है, जिसमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। स्वभाव एक उपाजित गुण है; उसमें शिक्षा और सत्संग से सुधार हो सकता है। सदन ने इस विषय में ससुराल नाई से पूछ ताछ करने की ठानी; उसे खूब भंग पिलाई, खूब मिठाइयाँँ खिलाईं। अपनी एक धोती उसको भेंट की। नाई ने नशे में आकर वधू की ऐसी लम्बी प्रशंसा की; उसके नखशिख का ऐसा चित्र खींचा कि सदनको इस विषय में कोई सन्देह न रहा। यह नखशिख सुमन से बहुत कुछ मिलता या। अतएव सदन नवेली दुलहिन का स्वागत करने के लिए और भी उत्सुक हो गया।

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यह बात बिल्कुल तो सत्य नही है कि ईश्वर सबको किसी न किसी हीले से अन्न वस्त्र देता है। पंण्डित उमानाथ बिना किसी हीले ही के संसार का सुख भोग करते थे। उनकी आकाशी वृत्ति थी। उनके भैंस और गायें न थी, लेकिन घर में, घी-दूध की नदी बहती थी, वह खेती बारी न करते थे, लेकिन घर में अनाजकी खत्तियाँ भरी रहती थी। गाँव में कही मछली मरे, कही