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सेवासदन
 


में खुशी से दे दूँ! मेरा सब कुछ उसका है, वह चाहे माँगकर ले जाय चाहे उठा ले जाय।

सुभद्रा चिढ़ कर बोली, तो तुमने गुलामी लिखाई है, गुलामी करो; मेरी चीज कोई उठा ले जायगा तो मुझसे चुप न रहा जायगा।

दूसरे दिन सन्ध्या को जब शर्मा जी सैर करके लौटे तो सुभद्रा उन्हें भोजन करनेके लिये बुलाने गई। उन्होने कंगन उसके सामने फेंक दिया। सुभद्रा ने आश्चर्य से दौड़कर उठा लिया और पहचानकर बोली, मैने कहा था न कि उन्होंने छिपाकर रखा होगा, वही बात निकली न?

शर्मा—फिर वही वे सिर पैर की बातें करती हो। इसे मैंने बाजार में एक सर्राफे की दुकान पर पाया है। तुमने सदन पर सन्देह करके उसे भी दुःख पहुँचाया और आपने आप को भी कलुषित किया।

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विट्ठलदास को सन्देह हुआ कि सुमन ३०) मासिक स्वीकार नहीं करना चाहती, इसलिये उसने कल उत्तर देने का बहाना करके मुझे टाला है। अतएव वह दूसरे दिन उसके पास नही गये। इसी चिन्ता में पड़े रहे कि शेष रुपयों का कैसे प्रबन्ध हो? कभी सोचते दूसरे शहर में डेपुटेशन ले जाऊँ कभी कोई नाटक खेलने का विचार करते। अगर उनका वश चलता तो इस शहरके सारे बड़े-बड़े धनाढ्य पुरुषो को जहाज में भरकर काले पानी में देते। शहर में एक कुंवर अनिरूद्ध सिंह सज्जन उदार पुरुष रहते थे। लेकिन विट्ठलदास उनके द्वार तक जाकर केवल इसलिये लौट आये कि उन्हें वहाँ तबले की गमक सुनाई दी। उन्होने मन में सोचा, जो मनुष्य राग रंग में इतना लिप्त है वह इस काम में मेरी क्या सहायता करेगा? इस समय उसकी सहायता करना उनकी दृष्टि में सबसे बड़ा पुण्य और उनकी उपेक्षा करना सबसे बडा पाप था। वह इसी संकल्प विकल्प में पड़े हुए थे कि सुमन के पास चलूँ या न चलूँ। इतने में पंडित पद्मसिंह आाते हुए दिलाई दिये आगे चढ़ी हुई लाल और बदन मलिन था। ज्ञात होता था कि सारी राता जागे हैं। चिन्ता और ग्लानि की मूर्ति बने हुए थे। तीन महीनें से