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सूरसागर-सारावली। (३७) - - - रके नन्दकुमार ॥ १०६७ ॥ शुक्लपक्ष परिवा पुरुपोत्तम क्रीडा करत अपार । हिलधर संग सखा । सब लीन्हें डोलत गृह गृह द्वार ॥ १०६८॥ द्वैज दाम कुसुमन की गूंथी अपने हाथ सवार । दई पठाय भानुतनया को पहिरत घोपकुमार ॥१०६९॥ तीज तरुणि.सब गावत आई नन्दराय दरवार । पकरे आय श्यामनट सुंदर भेटत भरि अकवार ॥ १०७० ॥ चौथ चहूं दिशिते सवधाये सखा मण्डलीधाय । इतते आई कुँवार राधिका होरी अधिक मचाय ॥ १०७१ ॥ पंचमि पंच ॥ शब्द करि साजे सजि वादिव अपार । रुंज मुरज ढफताल बांसुरी झालर को झंकार ।। १०७२।। वाजतवीन वार किन्नरी अमृत कुण्डली यंत्र । सुरसुर मण्डल जलतरंग मिल करत मोहनी मंत्र ॥ १०७३ ॥ विविध पखावज आवज संचित विच विच मधुर उपंग । सुरसहनाई सरस सारंगी उपजत तानतरंग ॥ १०७४ ॥ कंसताल कटताल बजावत शृंग मधुर मुहचंग । मधुर खंजरी पटह प्रणव मिल सुख पावत रतभंग ॥ १०७६ ॥ निपटन केरी श्रवणन धुनि मुनि धीरन रहे ब्रजवाल । मधुर नाद मुरलीको सुनके भेटे श्याम तमाल ॥ १०७६ ॥ छठिको षटरस सरस वनायो हरि भोजन करवायो । नानाविधि पकवान बनायो जेवल अति सुख पायो। १०७७॥ सातें सखि मिलि बारी लाई आरोगे ब्रजराज । आ3 दिशा सकल मिल गढ़ो दूर करी सब लाज। ॥१०७८ नवमी नवसत साजि राधिका हरिसों खेलत फाग । दशमी दशहू दिशा परिपूरण बाढयो अति अनुराग ॥ १०७९॥ एकादशी राधिका मोहन दोउ मिील खेलनलाग । वैठेजाय सघन कुंजनमें जहँ सहचरि बडभाग ॥ १०८०॥सपन कुंजमें डोल बनायो झूलत हैं पियप्यारी। ललितादिक वीरीजो खवावत नानाभांति सँवारी।।१०८१ अति सुगंध घसलाय अरगजा छिरकत सांवलगात। हरि वारी प्यारी हार छिरकत शोभा वरणि न जात।।५०८२॥द्वादश दिवस दुहूं दिश माच्यो फागुसकल व्रजमांझ । आलिंगन सबदेत श्यामको लखै न धुन्धरमांझ ॥ १०८३ ॥ तेरस भामिनि पियो अधररस अति आनन्दअपाय । चहुँदिशिते गहिके गठजोरी कीन्हों सखियन आय ॥१०८॥पून्यो सुखपायो ब्रजवासी होरी हर्प लगाय । परमराग अनुराग प्रकटभयो अतिफूले ब्रजराय ॥ ३०८५॥ यशुमतिमाय लाल अपनेको शुभदिन डोल झुलायो । फगुवादियों सकल गोपिनको भयो सवन मनभायो।।१०८६॥यमुनाजल क्रीड़त ब्रजवासी संगलिये गोविंद । सिंहद्वार आरती उतारत यशुमति आनंदकंद ॥ १०८७ ॥ यहि विधि क्रीड़त गोकुलमें हरि निज वृन्दावन धाम । मधुवन और कुमुदवन सुन्दर बहुलावन अभिराम ॥ १०८८॥ नन्दग्राम संकेत खिदरखन और कामवनधाम । लोहवन माठ वेलवन सुन्दर भद्रबहद वन ग्राम।। १०८९ ॥ चौरासी ब्रजकोश निरन्तर खेलत, बलमोहन । सामवेद ऋग्वेद यजुरमें कहेउ चरित व्रजमोहन ॥ १०९० ॥ व्यास पुराण प्रकट यह भाष्यो तंत्र ज्योतिपिन जान्यो। नारदसों हरि कहेउ कृपाकर अमृत वचन परमान्यो॥१०९१॥ सनकादिकसों कहेउ आपु हरि निजवैकुण्ठ मँझार । व्यासदेव शुकदेव महामुनि नृपसों कियो उचार॥१०९२||नारायण चतुरानन सों कहि नारद भेद बतायो।ताते सुनिके व्यास भागवत नृप शुकदेव जतायो ।।१०९३॥ शेप कहेउ जो सांख्यायनसों सुनिकै सनत्कुमार। कहेउ वृहस्पति पुनि मैत्रेसों उद्धवकियो विचार ॥ १०९४ ॥ ऐसे विविध प्रमाण प्रकटवहुलीला | करि ब्रजईश । सोई श्रीशुकदेव महामुनि प्रकटकही राधीश ॥ १०९५ ॥ वृन्दावनहरि यहि विधि क्रीडत सदा राधिकासंग । भोर निशा कबहूं जानत, सदा रहत यक रंग ॥ १०९६ ॥सपनकुंजमें - खेलत गिरिधर मथुराकी सुधिआई। राखे बरजि राधिकारानी अव न सकोगेजाई ॥ १०९७॥