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सूरसागर-सारावली। तासुत वाहन पुत्र अंगपरि जलसुत करों प्रकास ॥९५०॥ श्रीवलदेवःरास जो कहिये ताम भानु। मिलाय। ताकी सुता कहत चतुरानन निगम सदा गुणगाय ।।.९५१॥ सिंधुसुता तव भाग्या विलोकत मनमें रही लजाय । काम पिता माता गुरु ता वपु.युवति कोट दुरशाय ॥९५२॥ सांतो रासमेल द्वादशमें ऐसे वीतत याम । द्वितिय रासमें मिलत सप्तमी सो.जानत निजधाम ॥ ९५३ ॥ शैलसुताधार तारिपु बांधत अंग अंग पिय आजाकोटि यत्न कर सींचत तोऊ मिटत नहीं व्रजराज ॥९५४ ॥ वायस अजा शब्द मन मोहन रटत रहत दिन रैन । तारापतिके रिपुपर ठाढ़े देखते हैं हरि नैन।।९५६॥गंगासुत रिपु रिपु शिष मेरी सुनत.नहीं सखि काहानारायण सुत तासुत तासुत लगत.विपम विप ताह ॥ ९५६ ।। जलसुत वाहन देख वदनातुव.ब्रह्मसुता अकुलानी। मंगल मात तासु पति वाहन राजत सहशभुलानी ॥९६७ ॥ दक्ष प्रजापतिकी तनयापति तासुत नारगई। सिंधुसुतासुत बाहनकी गति देखत विपम भई ॥ ९५८॥ अग्नितात तेहि तात अंगना त्यों उनमें तू राखी। बंधु कुसुम ढुम तारिपुको पति सारंग रिपुकर भाखी ॥ ९५९ ॥ पति पाताल लग्न तनधारन सोसुख भुजा विचारी । प्रथम मथत जलनिधि जो प्रकटयोसो लागत सवनारी ॥९६०॥ बंधु: कुमुद पति पिता सुता जो तुव यश मधुरेगावै । ब्रह्मसुता सुत पदरज परसत. सारंगसुता देखावै ॥ ९६१ ॥ इन्द्रसुतापति भुना लगन लखि जलसुत हृदय लगावै.। इन्द्रसुता तनय पति को सुत ताके गुनै न पावै ॥ ९६२ ॥ धरत कमलमें कमल कमलकर मधुर वचन उच्चारः। कमलावाहन गहत कमलसों कमलन करत विचार ॥९६३॥ कालिन्दी पति नैन तासुसुत लागतहैं सबलोग । इन्द्र मात तेहि. तात सो सरधत प्रकट देखियत भोग ॥ ९६४ ॥ अंबुज मात तात पतितारिपु ता पति काम विगारे । ताते सुन तु भाननन्दनी मेरो वचन विचारे ॥ ९६५ ॥ तीस भान द्वै मास सकलऋतु सिंधुसुता सन जान । भूपन अंग लसत गुंजावलि और न कछू समान ॥९६६॥.इति दृष्टकूट सूचनिका सम्पूर्ण ॥ कबहुँक सेज रचत बंदी कर हृदय होम.घृत नैन । विप्र भोज बालन तुव देखियत. अंगकूस नहिं चैन ।।९६७॥ अब तू बेग विचार वचन मम सुन. वृषभानुकुमारि । मिलही वेग कमलदल लोचन सुन मेरी मनुहारि॥९६८॥गौर वरण वजात सांवरो ध्यान करत तुव अंग । पुनि ललिता हरिके ढिग आई वैठे सांवलरंग. ॥ ९६९॥ वेग चलो तुम श्याम मनोहर आएकाज महँ काज । लेहु मनाय प्राणप्यारीको प्रकटयो कुंज समाज ॥ ॥ ९७० ।। ऋतुवसंत अव आय देखियत फूले कुसुम. सुरंग । मानो मदन वसंत मिले दोउ खेलतहैं रसरंग.॥ ९७१॥ वेगि चलो अब पिया मनावन. नेक विलम्ब न लाओ। मेरी कही बात नहिं मानत ताको ज्ञान दृढ़ाओ ॥ ९७२ ॥परी पाय अपराध क्षमावत.सुनत मिलेगी-धाय । सुनत वचन दूतिका वदनमें श्याम.चले अकुलाय ॥९७३॥जहँ बैठी वृषभानुनंदनी तहँ आये धरि मौन। परेपाय हरि चरण परसकरि छिन अपराध सलौन।।९७४॥सुनि हरि वचन विलोकत शोभा मानग यो सब छूट। मिले धाय अकुलाय श्यामपन प्रेम काम रस लूट॥९७६॥रच्यो श्रृंगार श्याम अपने कर नखशिख प्रियां बनायो।शीशफूल वेनी नकवेसर तिलकभाल करवायो ॥९५६॥ युगताटक चिवुकं दशनावलि कर कंकण उरमाल । नूपुर पद काट छुद्रघंटिका सव.शृंगार रसाल ॥ ९७७॥ सकल शृंगार करत वर्णनको कृपाः यथामति मोर । होत विलम्ब मिलनके. कारण ताते वर्णत थोर ॥ ९७८॥चले धाय नवकुंज दोउ मिलि किशलय सेज.विराजे । परिरंभन सुख रास हास मृदु सुरत केलि सुख.साजे ॥ ९७९॥ नाना बंध विविध रस क्रीडा खेलत'श्याम अपार । रसरस