अव पति विनु ऐसो लागत यह ज्यों सरवर सोभित विनवारि । त्याही सूर जानिए गोपी जोन कपाकार मिलह मुरारि॥४२॥आसावरी॥ अव मेरीको बोले साखि । कैसे हरिके संग सिधारे अब
लौं यह तनु राखि ॥ प्राण उदान फिरत ब्रजको थिनि अवलोकनि अभिलापि । रूप रंग रस रास परानो वचन न आवै भाषि ॥ सूर सजीवन मूरि मुकुंदहि लै आईही आँखि । अब सोइ अंज न देति सुरचि करि जिहि जीजै मुख चाखि॥४३॥मलार॥ बहुत दिन जीवो पपीहा प्यारोवासररैनि नावले बोलत भयो विरह ज्वर कारोआपु दुखित परदुखित जानि जिय चातक नाउँ तुम्हारो। देखो सकल विचारि सखी जिय विठुरनको दुख न्यारो ॥ जाहि लगैसोई पैजानै प्रेम बाण अनियारो।सूरदास प्रभु स्वाति बूंद लगि तज्यो सिंधु करि खारो४४हौं ती मोहनके विरहजरीरे तूकत जारतारे पापीतू पैखि
पपीहा पिर पिउ पिउ अधराति पुकारतासव जग सुखी दुखीतूजल विनु तऊन तनुकी विथहि विचारत। कहा कठिन करतूति न समुझति कहा मृतक अवलनि शर मारतातू शठ वकत सतावत काहू होत उहै अपने उर आरत। सूरश्याम विनु ब्रज पर बोलत हठि अगिलेऊ जनम विगारत४५॥नट॥ जो तू नेकहू उडि जाहि । कहा निशि वासर वकत वन विरहिनी तनु चाहि ॥ विधिः वचन सुदेश वाणी इहां रिझवत काहि । पति विमुख पिक पुरुष वसुलौ एतौ कहा रिसाहि ॥ नाहिने सुख सुनत समुझत विकल विरह व्यथाहि । राखि यहु तनवा अवधिलों मदन मुख जिनि खाहि तु ॥ हतो तनु दग्ध खलखि फिरि कहा समुहाहिकरि कृपा ब्रज सूर प्रभु वितु मौनि माहि विसाहि४६॥सारंग ॥ कोकिल हरिको बोल सुनाउ । मधुवनते उपठारि श्यामको इहि ब्रज लैकरि आउ । जाजस कारण देत सयाने तन मन धन सब साजु । सुयश विकात वचनके बदले क्यान विसाहत आजु ॥ कीजै कछु उपकार परायो यह सयानो काज । सूरदास पुनि कहा यह औसर वन वसंत ऋतुराज ४७ सुनरी सखी समुझि शिख मेरी।जहां वसत यदुनाथ जगतमणि वारक तहां आउदै फेरी ॥ तू कोकिला कुलीन कुशल मति जानत व्यथा विरहिनी केरी । उपवन वैसि बोलि वरखानी वचन सुनाय हमहि करि चेरी ॥ कहियो प्रगट सुनाय श्यामसों अवला आनि अनंगरिपु घेरी तोसी नहीं और उपकारिनि यह वसुधा सब वृधि करि हेरी ॥ प्राणनके बदले न पाइयत सेति
विकाय सुयश की ढेरी । ब्रजले आउ सूरके प्रभुको गाऊंगी कलकीरति तेरी॥४८॥मलार॥ अब इह वरषो वीति गई । जिनि सोचहु सुखमान सयानी भली ऋतु शरद भई । प्रफुलित सरज सरोवर सुंदर नवावधि नलनि नई । उदित चारु चंद्रिका अवर उर अंतर अमृत मई ॥ घटी घटा,
सब अभिन मोह मद तमिता तेज हई । सरिता संयम स्वच्छ सलिल जल फाटी काम कई ॥ हे शारधा सँदेश सूर सुनि करुणा कहि पठई । यह सुनि सखी सयानी आई हरि रति अवधि दई ॥४९॥मारू॥ शरद समैहू श्याम न आए।को जाने काहेते सजनी कहुँ विरहिनि विर माए । अमल अकास कास कुसुमिन क्षिति लक्षण स्वाति जनाए । सर सरिता सागर जल उज्ज्वल अलिकुल कमल सुहाए ॥ अहि मयंक मकरंद कंद हति दाहक गरल जिवाए । त्रिय सब रंग संग मिलि सुंदरि रचि सचि सींच सिराए ॥ सूनी सेज तुषार जमत चिरहास चंदन पाए।अवलहि आश सुर मिलिवेकी भए ब्रजनाथ पराए॥५०॥ अथ चंद्र मति तरकवदति ॥ कान्हो टि गई शशि शीतल ताई । मनु मोहिं जारि भसम कियो चाहत साजत मनो कलंक तनु काई।याहीते श्याम अकास देखिये मानो धूम रह्यो लपटाई । ता ऊपर दौदेत किरनि उर उडुगण कउनै चढि इत आई ॥ राहु केतु दोउ जोरि एक कार कहि इहि समै जरावहि पाई । असतेन पचि
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सूरसागर।