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(४४) सूरसामर। कहो ॥ ७॥ इतते गई वन सुंदरी मिलि झूमकहो । उतते मोहन नवलन अहीर मिाल. झूमकहो ॥ बांस धरे जेरी धरी मिलि झूमकहो । बिच मार मची भई भीर मिलि झुमकहो ॥ ८॥ एक सखी निकसि झुंडते मिलि झूमकहो । तिनि पकरि लई हरि हाथ मिाल झूमकहो।। बहुरि उठी दशवीस मिाले झूमकहो । धरिलिये आय ब्रजनाथ मिलि झुमक हो ॥९॥ इक पट पीतांवर गह्यो मिलि झुमकहो । एक मुरली लई छिडाय मिलि झूमकहो । एक मुख मॉडहि कुमकुमा मिलि झूमकहो । एक गारीदै उठी गाइ मिलि झूमकहो ॥ १० ॥ प्यारी कर काजर लियो मिलि झुमकहो । हँसि आँजति पियकी आँखि मिलि झूमकहो ॥ यहि विधि हरिको घेरि रहीं मिलि झुमकहो । ज्यों घेरिरही मधुमाखि मिलि झूमकहो ॥ ११ ॥ अब तो घात भलीवनी मिलि झूमकहो। तब चीर हरे जलभीतर मिलि झुमकहो । सोपरी हँसा हम सारि हैं मिलि झूमकहो । सुनि लेहु ललन बलवीर मिलि झुमकहो ॥ १२ ॥ अब हम तुमहिं न गाइ मिाले झूमकहो । मुसकात कहा यदुराय मिलि झुमकहो ॥ की हमसों हाहाकरौ मिलि झूमकहो । की परहु कुँवारिके पाँइ मिलि झूमकहो ।॥ १३ ॥ वंकविलोकनिमन. हरो मिलि झूमकहो । ढगि तुमहिं रही ब्रजबाल मिलि झूमकहो । फगुवा बहुत मँगाय दियो मिलि झूमकहो।मधु मेवा मधुर रसाल मिलि झूमकहो॥१॥कहि मोहल व्रजसुंदरी मिलिझुमकहो। तब धाय धरे बल घेरि मिलि झूमकहो।संक सकुच सब छाँडिकै मिलि झूमकहो । चहुँपास रही मुखहरि मिलेि झुमकहो ॥१५॥कनक कलस भरि कुमकुमा मिलि झुमकहो । धरि ढारि दिये शिर आनि मिलि झूमकहो। चंदन वंदन अरगजा मिलि झुमकहो । सब छिरकति करति न कानि मिलि झूमकहो ॥१६॥ खेलि फागु अनुराग वढ्यो मिलि झूमकहो । फिरि चले यमुनजल न्हान मिलि झूमकहो ॥ द्वितिया बैठि सिंहासने मिलि झूमकहो । दोउ देत रत्न मणिदान मिलि झूमकहो ॥ १७॥ यहि विधि हरिसँग खेलही मिलि झुमकहो । गण गोकुलनारि अनंत मिलि झूमकहो ॥ सूर सबनको सुख दियो मिलि झूमकहो । राम रसिक राधिक कंत मिलि झूमकहो ॥ १८॥४४॥ रागिनी काफी ॥ मनमोहनललनामनहरयो । गृहगृहते सुंदरि चली देखन ब्रजराज कुमार। देखिवदन विथकित भह बैठी हैं सिंहदुआर ॥ डिमिडिमी पटह ढोल डफ वीणा मृदंग उपंग चंग तार । गावत प्रीति सहित श्रीदामा वान्यौ है रंग अपार ॥१॥ इत राधिका सहित चंद्रावलि ललिता घोष अपार । उत मोहन हलधर दोउ भैया खेलमच्यो दरवार ॥ रत्नजटित पिचकारी करलिये छिरकति घोषकुमारि । मदनमोहन पिय रसमातेहैं कछुअन अंग सँभार॥२॥ मोहनप्यारी सैनदै हलधर पकराए जायाआपुन हँसत पीतपट मुखदै आएहो आंखि अँजाय।बिहुरि सिमिटि ब्रजसुंदरी मनमोहन पकरेजायाअधरपान रस करति पियारी मुरली लई छिडाया३परिवा सिमिटिसकल ब्रजवासी चले यमुनजल न्हानावारिकुँवारपर पट नंदरानी देतिविपन बहुदानाद्विती यपाट सिंहासन बैठे चमरछत्र शिरढारासुरज प्रभु पर सकल देवता वरषत सुमन अपार॥४॥४५॥ ॥ श्रीहठी ॥ श्यामसंग खेलनचली श्यामा सब सखियनको जोरि । चंदन अगर कुमकुमा केसरि बहुकंचन घट घोरि ॥ खेलत मोहन रंग भरेहो लाल प्यारो सुंदर सब सुखराशि ॥१॥ फूलनके गेंदुक नवला सजि कनक लकुटिआ हाथ । जाय गही ब्रजखोरि राधिका कोटिक युवती साथ । उतते हरि आए जव.खेलत हो हो होरी संग । कानपरी सुनिए नाही बहुबाज़त ताल मृदंग ॥२॥ पैहिले सुधि पाई नहीं तब घिरे सांकरी खोरिः। अब हलधर उलटङ काहे तुम धावहु ग्वाल :