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सूरसागर।


रँगभीजी ग्वालिनि॥ कूजित कोकिल हंस कीर नैन सलोनरी रँगराची ग्वालिनि। अति नृत्य करत अलि कुल मिले रंग भीजी ग्वालिनि॥ आनंद अधीर नैन सलोनरी रँगराची ग्वालिनि॥ चढिविमान सुर देखहीं रंगभीजी ग्वालिनि। देहदशा बिसराइ नैन सलोनरी रंगराची ग्वालिनि॥ राधारसिक रसज्ञहो रँगभीजी ग्वालिनि।सूरदास बलिजाइ नैन सलोनरी रँगराची ग्वालिनि॥५॥ गौरी ॥ खेलत हो हो हो हो होरी अतिसुख प्रीति प्रगट भई उत हरि इतहि राधिका गोरी। हो हो हो हो होरी बाजत ताल मृदंग झांझ डफ बिच बिच बाँसुरी ध्वनि थोरी॥१॥ गावत दैदै गारि परस्पर उत हरि इत वृषभानु किसोरी। मृगमद साखजवाद कुमकुमा केसरि मिलै मिलै मथि घोरी॥२॥ गोपी ग्वाल लाल सब समूह गुलाल उडावत मत्त फिरैं रतिपति मनोधौरी। भरति रंग रति नागरि राजति मानहु उमँगि बिलावल फोरी॥३॥ छुटिगई लोकलाज कुलसंका गनत न गुरु गोपिनको कोरी। जैसे अपनेमें रमतेमें चोरभोर निरखत निशिचोरी॥४॥ उन षटपीत किए रँग राते इन कंचुकी पीत रँग वोरी। रही न मन मर्याद अधिक रुचि सहचरी सकति गांठि गहि जोरी॥५॥ वरणी नजाइ वचन रचना रचि बहु छबि झक झोरा झक झोरी सूरदास शारदा सुसरलमति सो अवलोकि भूमि भई भोरी॥६॥६॥ गूजरी ॥ ब्रजकी वीथिन वीथिन डोलत। मदन गोपाल सखा सँग लीने हो हो हो लै बोलत॥ ताल मृदंग बीन डफ बांसुरी बाजत गावत गीत। पहिरे वसन अनेक बरन तनु नील अरुन सित पीत॥ सुनि सब नारि निकसि ठाढी भई अपने अपने द्वार। नवसत साजे प्रफुलित आनन जनु कुमुदिनी कुमार॥ चपल नैन अति चतुर चारु तुम जनु फुलवारी लाई। देखतही नँदनंद परमसुख मिलत मधुप लौं धाई॥ राखत गहि भुजबल चहुँ दिशि जुरि अति रिस मुँह अकुलात। मानहु कमल कोश अलि अंतर भँवर भ्रमत वन प्रात॥ छांडति भरि भायो अपनो करि राजत अंग विभाग। मानहुँ उडिवचलेहैं अलि कुल आश्रित अंग पराग॥ अंतर कछु नरह्यो तेहि अवसर अति आनंद प्रमाद। मानहु प्रेम समुद्र सूर सुख लै उपटित मर्याद॥७॥ ऊंचोसो गोकुल नगर जहँ हरि खेलत होरी। चल सखी देखन जाहिं पिया अपनेकी चोरी॥ बिजत ताल मृदंग और किन्नरकी जोरी। गावति दै दै गारि परस्पर भामिनि भोरी॥ बूका सुरंग अबीर उड़ावत भरि भरि झोरी। इत गोपिनको झुंड उतहि हरि हलधर जोरी॥ नवल छबीले लाल तनी चोलीकी तोरी। राधाचली रिसाइ ढीठसों खेलैकोरी॥ खेलतमें कैसो मन सुनहु वृषभानु किसोरी। सूरसखी उर लाइ हँसति भुजगहि झकझोरी॥८॥ रागपूरवी ॥ ऐसीको खेलै तोसोंहोरी। बार बार पिचकारी मारत तापर वांह मरोरी॥ नँदबाबाकी गऊ चरावो हमसों करो बरजोरी। छाक छीनि खातहै ग्वालनकी करतरहे माखन दधि चोरी॥ चोवा चंदन और अरगजा अबिर लिये भरि झोरी। उडत गुलाल लाल भए बादर केसरि भरीहै कमोरी॥ श्रीवृंदावनकी कुंजगलिनमें गावो मुरली राधा गोरी। सूरदास प्रभु तुम्हरे दरशको चिरजीवो यह जोरी॥९॥ सारंग ॥ निकसि कुँवर खेलन चले रँग हो हो होरी। मोहन नंदकुमार लाल रँग हो हो होरी॥ कंचन माट भराइकै रँग हो हो होरी। सोंधेभरी कमोरी लाल रँग हो हो होरी॥ झांझ ताल सुरमंडरे रँग हो हो होरी। बाजत मधुर मृदंग लाल रँग हो हो होरी॥ तिनमें परम सुहावनी रँग हो हो होरी। महुवरि बाँसुरी चंग लाल रँग हो हो होरी॥ खेलत रँगीले लालजू रंग हो हो होरी। गए वृषभानुकी पौरि लाल रँग हो हो होरी॥ जे ब्रजहुती किसोरि लाल रँग हो हो होरी। ते सब आई दौरि लाल रंग हो हो होरी।सखियन सुख देखनकारने रंग हो हो होरी। गांठि दुहुँनकी जोरि