य। भरि अरगजा अबीर कनक घट देति शीशते नाय॥ छिरकति सखी कुमकुमा केसरि भुरकति वंदन धूरि। सोभित हैं मनो शरद समय घन आएहैं जल पूरि॥दशहू दिशा भयो परि पूरण सूर सुरंग प्रमोद। सुरवनिता कौतूहल भूलीं निरखति श्याम विनोद॥९९॥ आसावरी ॥ यमुनाकेतट खेलति हरि सँग राधा सहित सब गोपीहो। नंदको लाल गोवर्धन धारी तिनके नख मणि
ओपी हो॥ चलहु सखी जैये तहां छिन जियरा नरहायहो। वेणु शब्द मन हरिलियो नाना राग बजाइहो॥ सजल जलद तनु पीतांबर छबि करमुख मुरली धारी हो। लटपटी पाग बने मनमोहन ललना रही निहारिहो॥ नैन सैन सों नैन मिले करसों कर भुजाठये हरि ग्रीवाहो। मध्यनायक गोपाल विराजत सुंदरताकी सींवाहो॥ करत केलि कौतूहल माधव मधुरी वाणी गावैहो। पूरणचंद्र शरदकी रजनी संतन सुख उपजावैहो॥ सकल श्रृंगार कियो ब्रजवनिता नख शिख लोभलटा नीहो। लोक वेद कुल धर्म केतकी नेक न मानत कानीहो॥ बलि जाउँ बलके वीर त्रिभंगी गोपिनके सुखदाईहो। सकल व्यथा जु हरी या तनुकी हरि
हँसि कंठ लगाईहो। माधव नारि नारि माधवको छिरकत चोवा चंदनहो॥ ऐसो खेल मच्यो उपरापरि नँदनंदन जगवंदनहो। ब्रह्मा इंद्र देव गण गंधर्व सबै एक रस बरषैहो। सूरदास गोपी बड भागी हरि सुख क्रीड़ा करषैहो॥२४००॥ गौरी ॥ मानो ब्रजते करभी चली मदमातीहो। गिरिधर
गजपै जाइ ग्वारि मदमातीहो॥ कुल अंकुश मान्य नहीं मदमातीहो। अवगाहै यमुना नदी मदमातीहो। करति तरुनि जलकेलि ग्वारि मदमातीहो॥ चहुँ दिशते मिलि छिरकही मदमातीहो। वृंदावन वीथिनि फिरै मदमातीहो॥ संग मदन गजपालि ग्वारि मदमातीहो। कबहुँ नैन कर दै मिलै मदमातीहो॥ तैसीये गजगति चाल ग्वारि मदमातीहो। नागबेलि सलकी चरै मदमातीहो॥ मादक मांझ कपूर ग्वारि मदमातीहो॥ सुगंध पुढे श्रवणन चुवै मदमातीहो। मंडित मांग सिंदूर ग्वालि मदमातीहो॥ केसरि लाए तानिकै मदमातीहो। घुघरू घंट घुमाइ ग्वालि मद
मातीहो॥ ऊपर कुच युग घंटसो मदमातीहो। मुक्तामाल तुराइ ग्वालि मदमातीहो॥ अंग अंग छिरकै श्यामको मदमातीहो। कुमकुम चंदन गारि ग्वारि मदमातीहो॥ सूरदास प्रभु क्रीडहीं मदमातीहो। सँग गोकुलकी नारि ग्वारि मदमातीहो॥१॥ काफी ॥ खेलत आति रसमसे रँगभीनेहो। अति रसकेलि विशाल लाल रँगभीनेहो॥ जागत सब निशिगत भई रँगभीनेहो। भले कान्ह भले
आए प्रातलाल रँगभीनेहो। बोलत बोल प्रतीतिके रंग भीनेहो॥ सुंदर श्यामल गात लाल रँग भीनेहो। अति लोहित दृगरँगमगे रँग भीनेहो॥ मानो भोर भए जलजात लाल रँग भीनेहो। पिये अधर मधुपान मत्त रँग भीनेहो॥ कहत कहूँकी कहूँ वा लाल रँग भीनहो। केश सिथिल वरवेश सिथिल रँगभीनेहो॥ शशि मुख सिथिल जँभात लाल रँगभीनेहो। चाल सिथिल भुवभाल सिथिल रँग भीनेहो॥ अंग अंग अलसात लाल रँगभीनेहो। सकुचतहो कत लाडिले रँगभीनेहो॥ दुरत न उर नख गात लाल रँगभीनेहो। सूरदास प्रभु नँद किसोर रँगभीनेहो। बहुनायक विख्यात
वंगाल्याभातियस्याअलिकपटलकेशीतरशिर्नितांतं भर्तुःसंतप्तिहंत्रीमलय जरचितंसर्वदेहेमलेपम्॥ शुक्लंवासोदधत्यात्यतरुणतनुमदा लस्यमत्तेभगत्यायुष्मा कंसामुदेस्तायद्युवजनहृदयानन्दकर्ताकटाक्षः१॥ वस्त्रज्योतिसमानसुंदररदारत्नावान्वि तकुंडलेवाह्वोर्मुक्तिकरत्नहारह दयस्तत्कूंडलेकर्णयोः॥ नानापुष्पसुवासवासिततनुः पीतांशुकैरावृतःसंगीतेनविचक्षणोदिविषदांसमोहनाकानरः॥ रागकानर॥१॥ श्यामांगीमुकुरंकरणेदधतीहारंगलेमौक्तिकताटंकान्वितकर्णकंकणकरादिव्यांबरैःसंयुता॥रंभायाघनकाननेषुरमतीत्वध्यापयंतीशुकमा सावर्य पिकिन्नरैरपिसुरैर्गीतानिशांतेदिवि॥ राज्ञीआसावरी॥