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दशमस्कन्ध-१०


बाग। सुन राधिका कदम विटपनकी शाखा एक अमीफल लाग॥ श्याम अरुण कछु अधिक पीत छबि वरणिजाइ नहिं अंगविभाग। अति सुपक्व मुरलीके परसत चुइ चुइ उमगि परत रसरागा॥ ब्रजवनितावर बारि कनकमय रोके रहत सुधा सुरनाग। तुव प्रताप छुइ सकत नसुंदरि सुर मुनि मर्कट कोकिल काग॥ मैं मालिनि जतननि जलजुगयो सींचत सुहथ परे करदाग। सूर सुश्रम उठि भेटि पर स्पर पिउ पियूष पाए बडभाग॥२२॥ सारंग ॥ देखि श्यामको बदन शशि माई मोहिं अपनपो भूल्यो। विधमान या दृष्टि सरोवर मोहन वारिज फूल्यो॥ करिअगाध सघन वृंदावन चंचल लता तरंग निमि मृणाल सुमृत पत्रावलि गावत मुनिजन श्रृंग। सुरभी सुभग हंस गोवृष मृग जलचर जीव अनंत। सूर कछू यह ह्यांरी अद्भुत लीला कमलाकंत॥२३॥ बिलावल ॥ अब राधे नाहिन ब्रजनीति। नृप भयो कान्ह काम अधिकारी उपजीहै ज्यों कठिन कुरीति॥ कुटिल अलक भ्रुवचारुनैन मिलि सचरे श्रवण समीप सुमीति। वक्र विलोकनि भेद भेदिआं जोइ कहत सोइ करत प्रतीति॥ पोच पिसुन लस दशन सभासद प्रभु अनंग मंत्री विन भीति। सखि विन मिले तो नावनिऐहै कठिन कुराज राजकी ईति॥ मंदहास मुखमंद वचन रुचि मंदचाल चरणनभई प्रीति। नख शिखते चितचोर सकलअँग जस राजा तस प्रजा वसीति॥ तेरो तनु धनरूप महागुण सुंदर श्याम सुनी यह कीर्ति। सोकर सूर जेहि भाँति रहै पति जिनि बल बांधि बढावहु छीति॥२४॥ नट ॥ राधे तेरे रूपकी अधिकाइ। जो उपमा दीजै तेरे तनु तामें छबि नसमाइ॥ सिंह सकुचि सर व्यथा मरति दिन बिन सोइ नीर सुकाइ। शशिउर घटत हेम पावक परि चंपक कुसुम रहे कुम्हिलाइ॥ इभ तूटत अरु अरुण पंकभए विधिना आन बनाइ। कट्ठजपैठि पतालदुरेरहे खगपति हरिवाहन भएजाइ॥ हंसदुरयो सर दुरयो सरूरुह गज मृग चले पराइ। सूरदास विचारि देखिमन तोर रसन पिक रही लजाइ॥२५॥ मलार ॥ राधे तेरो रूप नआनसो॥ सुरभी सुतपति ताको भूषण सुत घन उति तन पूजै भानसो। अमीरसाल कोकिला जु साधे अंबुज चित्त अंकुंभि रामसो॥ विद्रुम अधर दशन दाडिम विज भृकुटी किए मुढानसो। सूरदास प्रभुसों कब मिलिहौं सुफलरूप कल्यानसों॥२६॥ सारंगा ॥ राधे यह छबि उलटि भई। सारँग ऊपर सुंदर कदली तापर सिंह ठई॥ ताऊपर द्वै हाटक वरणों मोहन कुंभ मई॥ ताऊपर कमल कमल बिच विद्रुम तापर कीर लई। ताऊपर द्वै मीन चपल हैं सउती साधरही। सूरदास प्रभु देखि अचंभो कहत न परत कही॥२७॥ केदारो ॥ लागो या बदनकी बलाई। खंजन तेरे खरे कटाक्षनि न्याउ गुपाल बिकाई॥ का पटतरद्यों चंद्र कलंकी घटत बढ़त दिन लाज लजाइ। जा शशिकी तुम आरि करतहौ चंद्र निहारौ आइ॥ ढोटा जोपै खरो अटपटो बातैं कहत बनाइ। सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलनते तनुकी तपत बुझाइ॥२८॥ बिलावल ॥ जलसुत प्रीतम सुत रिषु बंधव आयुध आनन विलखभयोरी। मेरु सुतापति बसत जु माथे कोटि प्रकाश रिसाइ गयोरी॥ मारुतसुत पति अरिपुर वासी पित वाहन भोजन नसोहाइ। हरसुत वाहन अशन सनेही मानहु अनल देह दवलाइ॥ उदधिसुता पति ताकर वाहन ता वाहन कैसे समुझावै। सूरश्याम मिलि धर्म सुवन रिषु ता अवतारहि सलित बहावै॥२९॥ नट ॥ लोचन श्याम जूके सायक। नैन चितै वृषभानु नंदिनी वश करि गोकुलनायक॥ यहै जानि पठई नँदनंदन तुम सब विधि सुखदायक। तू ब्रजनाथ शिरोमणि सजनी श्याम सुंदर पिय लायक॥ लग लागे पागे उर अंतर कठिन शिलीमुख पायक। सूरदास प्रभुमोहन जोरी करी कुंज मनभायक॥३०॥ सारंग ॥ जबते श्रवण सुन्यो तेरो नाम। तबते हा राधा हाराधा हरि इहै जु मंत्र जपत दुरि दाम॥ बसत