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(१०२) नि मानो शिर धारकै रुद्रनि करी पुकार ॥ राख्यो मेलिं पीठिते परधन हर जुकियो चिनहार।। सुरदास प्रभु सो हठ कीन्हों उठि चल क्यों न सवार ॥१३॥ सारंग ॥ बोलत हैं तोहि नंद किसोर ।। मान छांडि सखी नैकचितैरी पैयांलागौं करौं निहोर ॥ तरिवन तिलक वनी नकवेसरि चक्षु कानर मुख सुरंग तमोर । सब शृंगार वन्यो योवन पर लै मिलि मदन गोपाल अकोर ॥ लताभवन में सेज | विछाई बोलत सकल विहंगम मोरासूरदास प्रभु तुम्हरेदरशको ज्योंदामिनि धन चंद चकोर॥१ ॥ केदारो ॥ चलराधे बोलत नंद किसोर । ललित त्रिभंग श्याम सुंदर घन नाचत ज्यों वन मोर ॥ छिन छिन विरस करतिहै सुंदरि क्यों बरहत मनमोर । आनंदकंद चंद वृंदावन तू कार नैन। चकोर ॥ कहा कहौं महिमा तु अभागकी पुण्य गनत नहिं और । सूरसखी पिय पै चलिनागरि लै मिलि प्राण अकोर ॥ तोहि वोलैरी मधु केशी मथन । यमुना कूल अनुकूल तृपारत चकित दिलो कत सकल पथन ॥ नकरु विलंब भूषण कृत दूपण चिहुर विहुर नाना करनगयन । समुद कुमुद गति मकर मिलन दुति पसित भए सब नाथ नथन ॥ निकुंजनिकी सैन साजे एकाएकी रमत सखी वियो नसयन । अति जु कुसुमवास सखीरी तुम्हारी आश हरिजू रचि धरे अपने हाथन।युगजुजातपल श्रीगोपालके कुटिल तमकिरी चढे हैं रथन । सुरदास। अति गति कामरत वासरगत भयो तुम्हरी कथन।॥१६॥सारंग। माननि मान मनायो मोर । हौं माई पठई हौं तोपै प्रीतम नंदकिसोर ॥ तेरे विरह वृषभानुनंदिनी मोहन वहरावत डोर । तानतरंग मुरलि में लैलै नाम खुलावत तोर ॥ बलि तुहि जाउ वेगि लै मिलऊ श्यामसरोज वदन तुव गोर। सूरदास ऐसी दृष्टि सुधानिधि चरणकमल कमला चितचोर ॥१६॥ माननि नैक चितै यहि घोर । नाशत तिमिर बदन प्रकाशते ज्यों राजत रविभोर ॥ तुव मुख कमल मधुप मेरोमन विध्यो नैनकी कोर । वक्रविलोक माधुरी मुसुकनि भावतहै प्रियतोर ॥ अंतर दूरि करौ अंचलको होइ मनोरथ मोरासूर परस्पर रहौ प्रेमवश दोउ मिलि नवलकिसोर।।१७॥नयाकहि पठई हरिवात सुचितदै सुनि राधिका सुजान । तेंजु वदन झाँप्यो झुकि अंचल इहै न दुख मेरे मन मान ॥ यहपै. : दुसह जु इतनेहि अंतर उपजि परै कछु आन । शरद सुधा शशिकी नक्कीराति सुनियत अपने । कान ॥ खंजरीट मृग मीन मधुप पिक कीर करत हैं गान । विद्रुम अरु बंधूपं विव मिलि देत । कविन छविदान । दाडिम दामिनि कुंदकली मिलि वाड्यो बहुत वखान ॥ सूरदास उपमा नक्षत्र गन सब सोभित विनभान॥३८॥ सारंग ॥ रहीदै चूंघटपटको वोट । मनो कियो फिरि मान मवासों मन्मथ वंकट कोट । नहसुत काल कपाट सुलक्षण दै हग द्वार अगोटो । भीतर.भाग कृष्णभूपतिको राखि अधर मधु मोटो ॥ अंजन आड तिलक आभूषण सचि आयुध वड छोट । भृकुटी सूर गही करसारँग निकर कटाक्षनिचोट ॥१९॥विलावला तें जु नीलपट वोट दियोरी । सुन राधिका श्यामसुंदरसों विनहि काज अति रोष कियोरी ॥ जलसुत किरनि महाइक सोभा किधौं जलमें प्रतिविव विराजत मनहुँ शरद शशिराहु लियोरी । भूमि घिसनि किधौं कनकखंभ चढि मिलि रसहीरस अमृतपियौरी ॥ तुम अतिचतुर सुजान राधिका कत राख्यो भरि भानु हियोरी।। सूरदास प्रभु अँग अँग नागरि मनो काम कियो रूपवियोरी॥२०॥सारगरिपुकी ओट रहे दुरिसुंदर सारंग चारि । शशि मृग फनिग ध्वनिग दोउ अँग सँग सारँगकी अनुहारि ॥ तामें एक और सुत सारँग बोलक बहुरि विचारि । परकृत एक नाम, दोऊ किधौं पुरुष किधौं नारि ॥ ढाकात कहा : प्रेमहित सुंदरि सारंग नैक उपारीिसूरदास प्रभुमोहे रूपहि सारंग वदन निहारि२१॥यहि तेरेबंदावन