श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। नहीं लगता गोसांईजी श्रीअयोध्याजी,मथुरा, वृंदावन, कुरुक्षेत्र, पराग, वाराणशी पुरुषोत्तमपुरी इत्यादि क्षेत्रों में बहुत दिनतक घूमते रहे हैं सबसे अधिक श्रीअयोध्या, काशी, पराग औ उत्तरा- खण्ड, बंशीवट, इत्यादि ज़िल सीतापुरमें रहेहैं इनके हाथकी लिखीहुई रामायण जो राजापुरमेथी वह खण्डित होगई है पर मलिहाबाद में आज तक सम्पूर्ण काण्ड मौजूद है पत्रा नहीं है विस्तार भयस आधक हालात हम नहीं लिख सक्ते दो दोहा पर इन महाराजका वृत्तांत समाप्त करते हैं। दोहा-कविता करता तीनि हैं, तुलसी केशव सुरक्षाकविता खेती इन लुनी, सीला विनत मजूर तुलसी रवि सुरज शशी, उड़गण केशव दास । अबके कवि खद्योत सम; जहँ तहँ करत प्रकाशर . इति श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र समाप्त। श्वावू रघुनाथसिंहने जो दोहे मुझे दियेथे उससे मालूम हुआ कि ११७ कवि सूरदास के समयमें वर्तमान थोइनमें से दो तीन कवि को छोड़ कर सभोंका नाम “शिवसिंह सरोन" में मिलता है पर इस से (शिवसिंहसरोज )जो मैने समय लिखा है सबका समय सूरदासके समय से नहीं मिलता। सूरदास का समय संवत् १६४०"शिवसिंहसरोज में लिखा है और सूरदास जीने स्वयं साहित्यलहरी"नामक पुस्तक में साहित्यलहरीके बनाने का समय सं० १६०७ लिखा है।और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने लिखा है कि संवत् १६२० के लगभगमें इन्होंने शरीर त्यागा अव यदि सूरदासजीके जन्मसे मरण मयंत १२५ वर्ष रख लेते हैं तो भी संवत् १५०५ से लेकर १६२० तक होता है अब यदि संवत् १७००से अधिक के समय के कवियों को सूरदासजी के सामयिक रघुनाथ सिंह के दोहे और "शिवसिंह सरोज" के अनुसार टहराया गया है यह यथार्थ में ठीक नहीं है।अब सोचना पड़ाकि वाबूरघुनासिंहके दोहे ठीकहूँ कि नहीं। यहतो मुक्तकंठसे कहनापड़ेगा कि उस दोहेके अनेक कवियोंका सूरदास का सामयिक होना ठीक है परन्तु कईएकमें भ्रमहै उसमेंभी यह नहीं कहा जासकताहै कि इसनामके और कवि नहुयेहों परन्तु " शिवसिंह सरोज से जो मैंने कवियोंका समय प्रकाशकियाहै उसमें अवश्य भ्रमहै। हरिचन्द्रजी ने लिखाई मरदासके समयमें तुलसीदासनी नहुए उसका कारण सोचनेसे यह मालूमहोताहै कि नन्ददासजीके भाई तुलसीदासजी पर ध्यान गयाहै क्योंकि वैष्णवोंकी चौरासीवार्ताम लिखहि कि तुलसीदास और नन्ददास भाई और नंददास का समय सम्बत् १५८५ काहे औरतुलसीदास नन्ददासका भाई गोसाईचरित्न उभी लिखाहै । अथवा मीराबाईके समयपर ध्यान गया होगा क्योंकि "भक्तकल्पद्रुम नीर"रामरसिकावली तथा" हरिभक्तमकाशिकार में मीराबाई और तुलसीदासकी बातचीत लिखीहै परन्तु मीरावाईका समय तुलसीदासके समयमें मेरी सम्मतिसे नहींह । क्योंकि "शिवसिंहसरोज" में मीराबाई के विषयमें यह लिसाहे। " मीराबाई सं० १४७५ में हुई हमने इनका जीवनचरित्र भक्तमाल तुलसीदास कायस्थकृतमें देखा और तारीख चित्तौर से मिलाया तो वडा फरक पायागया अब हम इनका हाल चित्तौरके भाचीन प्रबंधसे लिखते हैं ए मीराबाई माडवार देशमें राना राठौरवंशावतंस में रेतिया देशाधिपतिके यहां उत्पन्न हुईथीं यह रियासत सारे माहवारके फिरकोंमें उत्तरोत्तर है और मीराबाईका विवाह संवत् १४७० के करीव राना मोकल देवके पुत्र राना कुंभकरन चित्तौर नरेशके साथ हुवा था संवत् १५२५ में उदारानाके पुत्रने रानाको मारडाला मीराबाई महास्वरूप वान औ कवितामें अति निपुणा थी रागगोविंद ग्रंथ भाषामें बहुत ललित बनाया है चित्तौरगढमें दो मंदिर करीव महल राना राय मलकेये एक राना कुंभूका भी दूसरा मीराबाईका सो मारावाई अपने इष्टदेव श्यामनाथकी उसी मंदिरमें स्थापन करि नृत्य गीत भाव भक्तिसे रिझाया करतीयों पक दिन श्यामनाथ मीराके मेमवश है चौकीसे उतरि अंकमें ले बोले हे मीरा, केवल एतनाहीं शब्द राधानाथके मुँहसे मुनि मीराबाई माणत्याग करि रसिकविहारी गिरिधारीके नित्यविहारमें नायमिली इन- दोनों मंदिरोंके बनानमें नब्वेलास रुपया खर्चहुवाया। . मीराबाईके विषयमें 'तारीख तुहफए राजस्थान से मौलवी मुहम्मद उबैदुल्लाह फरहतीने लिखाहै। ____"सांगाको इस शिकस्तका निहायत रंजहुवा,वह इसीसालके अन्दर मेवाड़ के पहाडी इलाफेमें मौतसे या किसीके जहरनेसे इन्तिकाल करगये, और उनके साथ मेवाहकी तरको खत्महोगई अगर वह जिन्दह रहते तो दोबारह लड़ाईमें किस्मत आजमाई करते यह महाराणा जोरावर खूबसूरत और दर्मियानी कदके भादमीथे । इन महाराणाके दो बेटे उनके सामने गुजर चुकथे, जिनमेस बड़े भोजरानके साथ मेडतिया रागर जयमलकी रिश्तहदारी बहिन मीराबाई,जिसके फकीरानह भजन अवाममें मशहूरहें, व्याही गईथी। कर्नेल टाहन गलत तौर पर उसकी शादी महाराणा कुम्भाके साथ लिखदी है, जो साँगा जीके दादाय। एशियाई मुल्कोंमें नियादह ब्याह करनेसे भादत खराव और निस्म नईफ होने के सिवा, हर एक औरत अपनी औलादकी विहतरीके वास्ते हर तरहकी तदधीर करना चाहती है, जिससे बहुत सरावियां पैदा होती हैं । इसलिये कर्नेल टाढने खयाल कियाहै कि महाराणा सांगाकों टन खानदानमसे किसीने जहर देदिया ।" अब पं० वलदेव मिश्र और पं० गनपतलाल चावेकी वातपर विशेष ध्यान दियाजाय तो इन्हें शुद्ध भरम होगया है जरा भक्तमालभी पढे होते तो सूरदास कितने हुण्हें मालूम होनाता, फिर निस मूरदासका मुरसागर बनायाहै व्यर्थ उनमें और सूरदासका हाल न लिखते । इति । लरावियां पैदा होता मस किसीने ज मित्र और मालमी
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