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श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र । जाति जाति ते गुण अधिक,सुन्यो न अजहूं कान । सेतु बांधि रघुवर तरे, हेला दै नृप मान ॥२॥ जब हरिनाथ जू ए रुपया औ सब सामानले घरको चले तो मार्ग में एक नागापुत्र. मिला और उसने हरिनाथ जू की प्रशंसामें यह दोहा पढ़ा। दोहा । दान पाइ दोई बढ़े, की हरि की हरिनाथ । उन बढ़ि ऊंचे पगकिये इन बढ़ि ऊंचे हाथ।॥॥ हरिनाथ ने सब धन धान्य जो पाया था सब इसी नागापुत्रको दै आप रीते हाथ घरको चले आए ओ अपनी औ अपने पिताकी कमाई तमाम उमर इसी भाँतिसे लुटाते रहे। (६६) मानराय बंदीजन असनीवाले सं० १९८० अकबरके यहांथे। (६७) रघुनाथ राय कवि सं०१६३५ यह कवीश्वर राना अमरसिंह जोधपुरके इहांथे। ' (६८) गणेशजी मिश्र सं० १६१५ । (६९) कबीर (कबीरदास ) जोलाहा काशीवासी सं० १६१० इनके दो ग्रंथ अर्थात् बीज रामैनी २ मेरे पास हैं औ इनके चरित्र तो सब मनुष्यों पर विदित हैं कालीदास जू ने हजारामें इनका नाम भी लिखाहै इसलिये हमने भी लिखदिया। (७०) लीलाधरकवि सं० १६१५ ए कवि महाराज गजसिंह जोधपुरके इहांथे औ इनका प्रमाण सत कवि करते चले आए हैं। (७१) नाथ कवि, नाथ कविके नामसे मालूम नहीं होसक्ता कि नाथ कितने हुए हैं जैसे उदयनाथ, काशीनाथ, शिवनाथ शंभुनाथ,हरिनाथ इत्यादि कवि लोगोंने नाथ करके अपना भोग वर्णन किया है जहां तक हमको मालूम हुआ तहांतक हर एक नाथ की कविता अलग अलग वर्णन करी है । नाथकवि ब्रजवासी गोपाल भट्ट ऊंचगांव वाले के पुत्र इनकी काव्य रागसागरोद्भव में पट्ऋतु इत्यादि सुंदर है। . (७२) दामोदरदास ब्रजवासी सं० १६२२ इनके पद रागसागरमें हैं एक और दामोदर कवि हैं। (७३) दीलदार कवि सं० १६५० हजारामें इनकी काव्य है। (७४) दौलति कवि सं० १६५१।। (७५) नागर कवि सं० १६४८ हजारामें इनके कवित्त हैं। (७६) दास (भिखारीदास कायस्थ) अरवल बुंदेलखण्डी सं० १७८० ए महान् कवि भाषासाहित्यके आचार्य गिने जाते हैं छंदार्णव नाम पिंगल १ रससारांश २ काव्यनिर्णय ३ शृंगारनिर्णय ४ वागवहार ५ ए पांच ग्रंथ इनके बनाये हुए अतिउत्तम काव्यके हैं। दास र बेनीमाधव दास पसका जिले गोंड्रा सं०.१६६५ ए महात्मा गोस्वामी तुलसीदास जू के शिष्य उन्होंके साथ रहते रहे हैं औ गोसाई जी के जीवनचरित्र की एक पुस्तक गोसाईचरित्र नाम बनाया है संवत् १६९९ में देहांत हुवा। (७७) नंदनकवि सं० १६२५ ए महाराज सतकवि होगए हैं हजारामें इनका नामहै। . (७८) हितहरिवंश स्वामी गोसाई वृंदावननिवासी व्यास स्वामीकेपुत्र संवत् १९५९ इनके पिता व्यासजीने राधावल्लभी संप्रदायको चलाया ए देव वंदके रहनेवाले गौड़ब्राह्मणथे हितहरिवंश जी महान्कविथे संस्कृतमें राधासुधानिधि नाम ग्रंथ और भाषामें हित चौरासीनाम ग्रंथ महासुंदर बनायाहै। " (७९) सेनकवि नापति बांधवगढ़के सं० १९६० हजारामें इनके कवित्तहैं एकवि स्वामी रामानंदजीके शिष्यथे। (८०) नारायणदास कवि सं० १६१६ हितोपदेश राजनीतिको भाषामें छंदवद्ध रचाहै।