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.(३४४) . . . .: सूरसागर। . . . बोल ॥ मुक्कामाल बाल वग पंगति करत कुलाहल कूल । सारस हंस मध्य शुक सैना वैजयंति सम तल ॥ पुरइनि कपिश निचोल विविध रंग विहत्तत सचु उपजावै । सुरश्याम आनंद कंद की सोभा कहत न आवै ॥३५॥सूही ॥ तरुतमाल गोपाल लाल वनमाल गिरिधर हृदय विसाल। कबहुँक गोधन सँगले बालक कबहुँ फिरत सँग सखा ग्वाल । धनि बजनायक सर्वगुण लायक कियो महरि पोषी प्रतिपाल । कबहुँक वनिकै रहे जु बनए गोरस दान लेत तत्काल ॥ पैठि पताल नाथ्यो काली फन प्रति नृत्यत विविध ताल । धन भूषन धन मुकुट जरयो नग हीरा चूनी लाल ॥ धन्य सूर प्रभुता धरे राजै सँग सँग वनिता जालाकुंडल लोल कपोल विराजत दुशन चमक सपनाल॥३६॥कान्हरोभाल तिलक सोभित शिर केसरि नैना विवि वने।कटि कछनी चंदन खौरि । श्याम वरन घन सुंदर ऐसे नटनागरके जैएरी वारने ॥ त्रिभंगी बै नृत्य करत ब्रज युवतिन मंडली विच दुहुँ दुहुँ विच श्याम धने । मोरमुकुट शीश धरे राजतहै सूरप्रभु निरखि निरखि अमरन भजै. जैजैवनि भन॥३७॥धनाश्रीरास मंडल मध्य श्याम राधा।मनो धनवीच दामिनी कोंधति सुभग येकहै रूप द्वैनाहि वाधा ॥ नायका अष्ट अष्टहु दिशा सोहहीं बनी चहुँपास सव गोप कन्या। मिले सब संग नहिं लखति कोउ परस्पर बने षटदशसहस कृष्ण सैन्या ॥सजे शृंगार नवसांत जंग मग रह्यो अंगभूषण नि वनी तैसी। सूर प्रभु नवल गिरिधर नवल राधिका नवल व्रजसुता मंडली जैसी ३८॥भैरवायुवति अंग छबि निरखत श्यामानंदकुमार श्रीअंगमाधुरी अवलोकति ब्रजवाम ॥ परी दृष्टि कुच उचनि पियाकी वह सुख कह्यो नजाई । अँगिया नील मांडनी राती निरखत नैन चुराई ॥वै निरखति पिय उर भुनकी छवि पहुँचनि पहुँची भ्राजति।करपल्लवन मुद्रिका सोहतं. ता. छबिपर मन लाजति ॥ वंदन विद निरखि हरि रीझे शशिपर वालविभास । नंदलाल ब्रजवाल कि छवि क्यों वरणै सूरजदास ॥३९॥ गौरी ॥ श्यामतनु राजत पीतपिछौरी । उर वनमाल काछनी काछे कटिकिकिनि छबि रोरी ॥ वेनी सुभग नितंबनि डोलत मंदगामिनी नारी । सूथन जंघन बांधि नारा बंद तिरनी पर छवि भारी ॥ नखनिरंग जावककी शोभा देखत पिय मन भावत । सूर दास प्रभु तनु त्रिभंग द्वै युवतिन मनहि रिझावत ॥४०॥ सारंग॥ नीलांवर पहिरे तनु भामिनि जनु घनमें दमकतहै दामिनि । शेष महेश लोकेश शुकादिक नारदादि मुनिकी है स्वामिनि ॥ शशि सुखतिलक दियो मृगमदको खुटिला खुभी ज़रायजरी । नासा तिल प्रसून वेसरि छवि मोतियन । माँगसुहागभरी॥ अति सुदेश मृदु चिकुर हरत चित गुंथे सुमन रसालहि । कुवरी अति कमनीय । सुभग शिर राजति गौरी वालहि । सगरी कनक रत्न मुक्तामणि लटकनि चितहि चुरावै । माना । कोटि कोटि शत मोहनी पाँइनि आनि लगावै॥ काम कमान समान भौंह दोउ चंचल नैन सरोज। अलिगंज़न अंजन दै रेखा वरषत बाण मनोजै ॥कंवकंठ नाना मणिभूषण उर मुक्ताकी माल। कनक किंकिणी नूपुर कलरव कुंजत बालमराल ॥ चौकी हेमचंद्र मणिलागी हीरारतन जराय खची। भुवन चतुर्दशकी सुंदरता राधेके मुखमनहिं रची। सजल मेघ धन सांवल सुंदर वाम.अंग अति सोहै। रूप अनूप मनोहर मोहे ता उपमा.कहिकोहैं ॥ सहज.माधुरी अंग अंग प्रति सुक्श किए ब्रजनाथ धनी । अखिललोक लोकेश.विलोकत सब लोकन महि एक गनी॥ कबहुँक. हार सँग नृत्यतिं श्यामा श्रम कनबूंद विराजतयो। मानहु अधर सुधाके कारण शशि दूजो मुकताह तयो॥रमा उमा अरु शची अरुंधति दिन प्रति देखन आवे । निरखि कुसुम सुरगण हैं वषेत प्रेम मुदित यश गावै ।। रूप राशि सुखराशि राधिका शील महागुणराशी। कृष्णचरणते पावहिश्यामा । %3D