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- ..... श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। (६६) विद्यादास ब्रजवासी सं० १६५० इनके पद रागसागरोद्भवमें हैं। .:: (५६)छीतस्वामी व्रजवासी सं० १६०१इनके पदं वहुत रागकल्पद्रुममें, ए महाराज बल्लभा-.. चार्यके पुत्र विट्ठलनाथजीके शिष्यथे इनकी गिनती अष्टछापमेंहै। (६७) भगवत रसिक वृंदावननिवासी माधवदास जीके पुत्र हरिदास जीके शिष्य सं० १६०१ इनकी कुंडलियां बहुत सुंदरहैं। (५८) छत्रकवि सं० १६२६ विजयमुक्तावली नाम ग्रंथ अर्थात् भारतकी कथा बहुतही : संक्षेपसे सूचीपत्रके तौरसे नानाछंदोंमें वर्णन कियाहै। . . (६०) गदाधर मिश्रब्रजवासी सं० १५८० इनके पद राग सागरोद्भवमें हैं इनका बनाया हुवा। यह पद 'सखी हौं श्यामके रंग रंगी। देखि विकाय गई वह मूरति मूरति हाथ विकी ।' देख स्वामी. जीव गोसाई जो उस समय बड़े महात्मा थेगदाधर भट्टसे बहुत प्रसन्न हुए। (६१) मानसिंह महाराजै कछवाह आमेरवाले सं०.१५९२ ए महाराज कवि कोविदोंके बड़े कदरदानथे हरिनाथ इत्यादि कवीश्वरोंको एक एक दोहामें लक्ष लक्ष रुपया इनाम दिया' इन्होंने अपने जीवनचरित्रकी किताब बहुत विस्तार पूर्वक बनायाहै जिसका नाम मानचरित्रहै उसी ग्रंथमें । लिखाहै कि जब राजा मानसिंह काबुलकी ओर अकबरके हुकुमसे चले और अटक नदीपर . पहुँचकै धर्मशास्त्रको विचारि उतरनेमें शोच विचार करने लगे औ अकबर शाहको लिखा तब : अकंवरने यह दोहा लिखा।- दोहा-सवै भूमि गोपालकी, तामें अटक कहा। जाकें मनमें अटकहै, सोई अटक रहा ॥ १॥ . यह दोहा पढ़ि मानसिंह अटकपार जाय स्वामिकार्यमें बड़ी वीरता करी॥ ____(६२) लालनदास ब्राह्मण दलमऊ वाले सं० १६५२ ए महाराज बड़े महात्मा हो गुज़रे हैं. इनके कवित्त शांतरसमें हैं और हमारामें भी कालीदासने इनका नाम लिखाहै । एक और मोती- लाल कवि हुएहैं। • (६३) मोतीलाल कवि वांसी राज्यके निवासी सं० १९९७ गणेशपुराण भाषामें बनाया। एक और मोतीलाल कवि हुए हैं। (६४) हरिदास स्वामी वृंदावन निवासी सं० १६४० इन महाराजका जीवनचरित्र भक्तमाला : में है इहां केवल हमको काव्यहीका वर्णन करना अवश्य है सो संस्कृत काव्यमें जयदेवं कवि . . से इनकी कविता कम नहीं है औ भाषामें इनके पद सूर औ तुलसीके पदोंके समान मधुर औ....' ललित हैं इन्होंने बहुत ग्रंथ बनाये हैं पर हमने इनकी कविता केवल वही देखा है.जो राग सागरो। द्भव रागकल्पद्भुममें है तानसेनको इन्हीं महाराजने काव्य औ संगीत विद्या पढ़ाया था। (६५) हरिनाथ कवि महापात्र बंदीजन असनीवाले सं० १६४४ ए महान् कवीश्वर नरहरि । जूके पुत्र बड़े भाग्यवान् पुरुषथे जहां जिस दरबारमें गये लाखों रुपया हाथी घोड़े गांव रथ : पालकी पाय लौटे श्रीबांधवनरेश राजाराम बघेलेकी प्रशंसामे यह दोहापढ़ा। .. . . दोहा-लंका लौ दिल्ली दई , साहि विभीषण काम । भये वघेलो राम सों, राजा राजाराम॥१॥ | इस दोहा पर एक लक्ष रुपया इनाम पाया । औ राजा मानसिंह सवाई: आमेवाले के पास..:: नए दोहां पढ़ि दो लक्ष रुपया दान पाया। .दोहा । बलियोई कीरति लता, कर्ण करी द्वै पात । सींची मान महीप ने, जब देखी कुँभिलात॥७॥