कमल पानकरि माते तजि उन मत्तभएरी। ज्यों कांचुरी भुअंगम तनही फिरि नतकै जुगए सुगएरी॥ ऐसी दशा भईरी इनकी श्यामरूप में मगन रएरी। सूरदास प्रभु अगणित सोभा नाजानौं केहि अंग छएरी॥ सारंग ॥ नैन निरखि अजहूं न फिरेरी। हरिमुख कमल कोश रस लोभी मनहु मधुप
मधु माति गिरेरी॥ पलकनि शूल सलाकसहीहै निशि वासर दोउ रहत अरेरी। मानहु बिवर गए चलि कारे तजि केचुरी भये निनरेरी॥ ज्यों सरिता पर्वतकी खोरी प्रेम पुलक श्रमस्वेद झरेरी। बूंद बूंद ह्वै मिले सूर प्रभुना जानों केहि घाट तरेरी॥ सारंग ॥ नैनगए सु फिरे नहि फेरि। यद्यपि घेरि घरि। मैं राखति रहे नहीं पचिहारी टेरि॥ कहाकहौं सपनेहुँ नहिं आवत वश्यभए हरिहीके जाई। मोते कहा चूक उनि जानी जाते निपट गए विसराई॥ छिनहूकी पहिचानि नमानी उनको हम प्रतिपाले प्रेम। जोतजि गए हमारे वैसेइ उन त्याग्यो हमहैं वोहि नेम। मात पिता संगहि प्रति पालै सँगही संग रहै निशियाम। सुनहु सूरए बालसँघाती प्रेम विसारि मिले ढरिश्याम॥ नट ॥ नैननि देखिवेकी ठौरि। नंद गोपकुमार सुंदर किए चंदन खौरि॥ शीशपिंड शिखंड भ्राजत नखशिखा छबि और। सुभग गावनि मृदुबजावनि वैनसुर ललितौर॥ कुटिल कच मृगमद तिलक छबि वचन मंत्र ठगौर। सूर प्रभु नट रूप नागर निरखि लोचन वोर॥ मलार ॥ तबते नैन रहे एक टकही। जबते श्याम त्रिभंगललित गति जातभैइन तकही॥ मुरली धरे अरुन अधरनिपर कुंडल झलक कपोल। निरखत एकटक पलक भुलानो मानो
विकाने मोल॥ हमको वै काहेन विसारैं अपनी सुधि उन नाहिं। सुरश्याम छबिं सिंधु समाने वृथा तरुनि पछिताहिं॥ मलार ॥ नैना नैननि माँझ समाने। टारे नटरत एक मिलि मधुकर सुरसमत्त अरु झाने॥ मन गति पंगु भई सुधि विसरी प्रेम पराग लुभाने। मिले परस्पर खंजन मानों झगरत निरखि लजाने॥ मन वच क्रम पलवोट नभावत छिनु युग वरस समाने। सूरश्याम के वश्य भए ए जेहि वीतै सो जाने॥ गौरी ॥ मेरे माई लोभी नैन भए। कहा करौं ए कह्यो नमाने वरज तही जो गए॥ रहत नघूंघटवोट भवनमें पलक कपाट दए। लए फँदाइ विहंगम मानो मदन व्याध विधए। नहिं परमिति मुख इंदु सुधानिधि सोभा नितहि नए। सूरश्याम तनु पीत वसन छबि अंग अनंग जितए॥ विहागरो ॥ नैना लोभहिं लोभ भरे। जैसे चोर भरे घरहीमें बैठत उठत खरे॥ अंग अंग सोभा अपार निधि लेत नसोच परे। जोइ देखै सोइ सोइ निर्मोलै करलै तहीं धरै॥ त्यों लुब्धे ए टरत नटारे लोक लाज नडरे। सूर कछू उनिहाथ न आयो लोभ जाग पकरे॥
सोरठ ॥ नैना वोछे चोर सखीरी। श्याम रूप निधि नोखे पाई देखत गए भरीरी॥ अंग अंग छबि चित्त चलायो सो कछु रहति परीरी। कहा लेहिं कह तजौ विवस भए तैसिय करनि करीरी॥ पुनि पुनि जाइ एक एक लेते आतुर धरणि धरीरी। भोरे भए भोरसों ह्वैगयो धरे जगार परीरी॥ जो कोउ काज करै विन बूझे पेलि महत्त हरीरी। सूरझ्याम वश परे जाइकै ज्यों । मोहिं तजी खरीरी॥ मलार ॥ नैना मारेहू पर मारत। राखी छबि दुराइ हृदय में तिनको हियभरि डारत॥ आपुन गए भली कीन्ही अब उनहि इहांते टारत। वरवशही लै जान कहतहैं पंज आपनी सारत॥ ऐसे खोज परयो यह लेहैं आवत जानत हारत। उनके गुण कैसे कहि आवै सूरपयारहि झारत॥ मलार ॥ नैना खोज परेहैं ऐसे। नैक रही हरि मूरति हृदय डाह मरतहैं जैसे॥ मनतौ गयो इंद्रियन लैकै बुधि मति ज्ञान समेत। जिनकी आशसदा हम राखैं तिन्ह दुख दीन्हो जेत॥ आपुन गए कौन सो चालै करत ढिठाई और। नैक रही छबि दुति हिरदैमें ताहि लगावत ठौर॥ गए रहे आए एहि कारज भार टारतहैं ताहि। सूरदास नैननकी महिमा कोहै
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सूरसागर।