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श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। - फारसी। शुमार शौक नदानिस्ताअमकि ताचंदअस्त, जुज़ ई कद्र कि दाम सरूत आरजूमन्द अस्त, नदाना दानम्, वनैदानम् ईकदरदानम्, कि पाय तावसरम हर्चे हस्तदर बंदस्त, एक दिन खानखाना ने यह आधा दोहा बनाया- तारायन शशि रैन प्रति, सूर होहिं शशि गैन । औ दूसरा चरण नहीं वना रोज रात्रि को यह आधा दोहा पढ़ा करते थे दिल्लीमें एक खत्रानी ने यह हाल मुनि आधा चरण बनाय बहुत इनाम पाया। तदपि अंधेरो हे सखी, पीव न देखे नैन ॥१॥ (३१) जगनकवि सं० १६५२ शृङ्गाररस में कवित्त चोखे हैं। (३२) ऊधोराम कवि सं० १६१० इनकी कविता कालीदास जू ने अपने हजारा में लिखी है । (३३) कमाल कवि (कबीरजू के पुत्र ) कायस्थ सं० १६२२ इनकी कविता कालीदास ने हज़ारा में लिखी है। (३४) जमालउद्दीन पिहानीवाल सं० १६२५ कवि अच्छे थे। (३५) जगनंद कवि बृंदावनवासी सं० १६५८ इनके कवित्त हजारा में हैं। (३७) जमाल सं० १६०२ ए कवि गूढ कूट में बहुत निपुण थे इनके दोहा बहुत सुंदर हैं । (३८) जलालउद्दीन कवि सं १६१५ हजारा में इनके कवित्त हैं। (३९) कल्याणदास ब्रजवासी कृष्णदास पय अहारीके शिष्यं सं १६०७ इनके पद रागसागरोद्भव में हैं । पुनः कल्याण सिंह भट्ट एक और है। (१०) फैजी शेख अवल फैज नागौरी शेख मुवारक के पुत्र सं० १६०८ इनको छोटे बड़े विद्वान् भली भांति जानतेहैं कि ए फैजी अरवी फारसी संस्कृत भाषामें महा निपुणथे इनका ग्रंथ भाषामें हमने नहीं पाया केवल दोहरा मिलेहैं ए अकबरके कविथे। (४१) ब्रह्मकवि राजा बीरबल ब्राह्मण अन्तवैदि वाले सं० १९८५इनका नाम प्रथम महेशदासथा एकान्यकुब्ज दुबे ब्राह्मण जिले हमीरपुरके किसी गांवके रहनेवालेथे काव्य पढ़ि लिखि राजा भगवानदास आंवेर नरेश के इहाँ कवि लोगोंमें नौकर होगये राजा भगवानदास इनकी कवितासे बहुत प्रसन्न है अकबर बादशाहको नज़रके तौर इनको दैदिया ए कवि काव्यमें अपना नाम ब्रह्म करिकै वर्णन करतेथे अकबर कविताके सिवाय इनमें सब प्रकारकी बुद्धि पाय पूर्व संस्कारके अनु- सार प्रथम अपना मित्र बनाय कविराइकी पदवी दिया तेहि पीछे पांच हजारीका मनसब औ मु. साहेब दानिश वरराजे वीरवरका खिताब दिया इनके जीवनचरित्र विचित्र तवारीखोंमें लिखे हैं सन् ९९० हिंजरीमें विजौर इलाके कावुलमें पठानों के हाथसे समरभूमिमें मारेगए इनका समय ग्रंथ तो कोई हमने देखा सुना नहीं पर इनकी कविताई बहुतही फुटकर हमारे पुस्तकालयमें है सूरदासजीने कहा है। दोहा। सुंदर पद कविगंग के, उपमाको वरवीर । केशव अर्थ गंभीर को, सूर तीनि गुण तीर ॥ राजा बीरवर ने अकंबरके हुकुम से अकवरपुर गांउ जिले कानपुरमें वसाय आप.भी. अपना. निवासस्थान उसीको नियत किया और नारे नौल कसवा में इनकी पुरानी इमारतें बड़ी