- श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। ... (१०.) आशकरनदाप्त कछवाह राजा भीमसिंह नरवरगढ़ वालेके पुत्र सं० १६१६ पद बहुत बनाए हैं जो कृष्णानंद व्यासदेवके संग्रहीत ग्रन्थमें मौजूदहें। (११) अजबेस प्राचीन सं० १९७० ये कवि श्रीराजा वीरभानसिंह जोधपुरके इहाँथे औ उसी देशके रहनेवाले वंदीजन मालूम होतेहैं। .. अजबेस नवीन भाट सं० १८९२ ये कवि श्रीमहाराज विश्वनाथसिंह बांधव नरेशके इहाँथे ।' (१२) कादर [ कादिवश मुसल्मान पिहानीवाल ] सं० १६३५ कवितामें निपुणथे औं सैयद इब्राहीम पिहानीवाल रसखानिके शिष्यथे। (१४) दोडर, (राजा टोडरमल खत्री पंजाबी) सं० १५८० ये राजा टोडरमल अकबर बादशाहके दीवान आला थे इनके हालातमें तारीख फारसी भरी हुई है अरबी फारसी संस्कृत विद्या महानिपुणथे श्री मद्भागवतको संस्कृतसे फारसीमें उल्था कियाहै औ भाषामें नीति संबंधी बहुत कवित्त कहे हैं इन महाराजने दो काम बहुत शुभ हिन्दुस्तानियों के लिए किए हैं। एकतौ पंजाब देशमें खत्रियोंके इहां रिवाज तीनि साला मातमको उठाय केवल वार्षिक रसमको नियत किया दूसरे फारसी हिसाव किताबको ईरान देशके माफिक हिन्दुस्तानमें जारी किया। सं०९९८ हिजरीमें शहर लाहौरमें देहान्त हुआ। (१६) जैतकवि सं० १६०१ अकबर बादशाहके इहांथे। (१७) चरणदास ब्राह्मण पंडितपुर जिला फैजाबाद सं० १५३७ सुरोदय ग्रंथ बनाया। (१८) चतुर्भुज सुंदर कविता करी है। चतुर्भुजदास सं• १६०१ रागसागरोद्भवमें इनके बहुत पद हैं ए महाराज करौलीके राजा स्वा । मी विट्ठलनाथजी गोकुलस्थके शिष्यथे अष्टछापमें इनका भी नाम है। (१९) जीवन कवि सं० १६०८ इनके कवित्त हजारामें हैं। (२१) ताजकवि सं० १६५२ हज़ारामें इनके 'कवित हैं। .. (२२) होलरायकवि बंदीजन होलपुर जिले बाराबंकी सं० १६४० ए महान कवि अकवरके दरवार तक राजा हरिवंशराइ दिवान कायय बदरकाबासीके वसीलेसे पहुँचे औ एक चकं पाइ उसीमें होलपुर नाम ग्राम बसाया एक दिन श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी अयोध्यासे लौटते समय होलपुरमें आए होलरायने गोसांईजीके लोटाकी प्रशंसामें कहा- 'दोहा-लोटा तुलसीदासको, लाख टकाको मोल ।-तब गोसांईजी बोले- ... . मोल तोल कछु है नहीं,लेहु राय कवि होल ॥१॥ . होलराइने उस लोटाको मूर्तिके समान स्थापन करि उस्के ऊपर चबूतरा बांधि पूजन करते रहे हमने अपने आंखसे देखा है कि आज तक उसकी पूजा होती है इस होलपुरमें सिवाय गिरिधर औ नीलकण्ठ इत्यादिके कोई नामी कवि नहीं हुए इन दिनों लछिराम औ संतवकस ए दो कवि अच्छे हैं यह गाँउ आज तक इन्हीं वंदीजनोंके नंवरमेंहै। . (२३) खेमकवि २ ब्रजवासी सं० १६३० रागसागरोद्भव रागकल्पद्रुममें इनके पद हैं । एक खेमकवि बुंदेलखंडीहैं। .. (२४.) जोधकवि-सं० १६९० अकबरबादशाहके इहांथे। . . .
- १८९२सवंदके अनबेस सूरदासके समयके नहीं हैं।