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(२९४) सूरसागर। बन व्याइ । सुनहु सूर मैं जेंवन बैठो वह सुधि गई भुलाइ ॥५१॥ ललित ॥धौरी मेरी गाइ वियानी।। सखन कह्यो तुम जेवर बैठे श्याम चतुरई ठानी। गाइ नहीं हां बछरानाहीं वहँ है राधारानी। सखा हँसत मनही मन कहि कहि ऐसे गुणनिनिधानी ॥ जननी भेद नहीं कछु जाने वार वार अकुलानी सूरश्याम भूखो उठि धायो मरै नगाइ वियानी ॥५२॥ कल्याण ॥ सैनदै नारि गई बनधामको । तबहिं करकौर दियो डारि नहिं रहिसके ग्वाल जेवत तजे मोहिं गई श्यामको ॥ चले अकुलाइ बनधाइ व्यानी गाय देखिहो जाइ मनहरष कीन्हों।प्रिया निरखति पंथ मिलै कव हरिकंत गये येहिर अंतर हँसि अंक लीन्हों। अतिहि सुखपाइ अतुराइ मिले धाइ दोऊ मनो अति रंक नव निधिपाई सूर प्रभुकी प्रिया राधिका अति नवल नवल नंदलालके मनहि भाई ॥ ५३ ॥ धनाश्री ॥ पिछ; वारे वै बोलि सुनायो । कमलनयन हरि करत कलेऊ करनाहिन आनन लायो । गाइ एक वन व्याइ रहीहै येहि मिस आतुर उठिधायो । वेनु नलियो लकुट नाह लीन्हों हरवराइ कोऊ संखन बोलायो। चौंकि परे चकृत है जित कित सत्य आहिकी सपन भयो ज्ञायो । फूले फिरत संकना मानत मानहु सुधा किरनि छविछायो । मिलि बैठे संकेत लतातर कियो सवै जितनो मन भायो। सूरदास सुंदरी सयानी उलटि अंक गिरिधर पर नायो॥५४॥ देवगंधार ॥ दोउ राजत रति रण धीर। महासुभट प्रगटे भूतल वृषभानु सुता वलवीर ॥ भौह धनुष चढाइ परस्पर सजे कवच तनुचीर । गुण संधान निमेष घटत नहिं छुटे कटाक्षनितीर ॥ नखनेजा आकृत उरलागे नेक न. मानत परि। मुरलीधरनि डारि आयुधलै गहे सुभुज भटभीर ॥ प्रेम समुद्र छाड मर्यादा उमंगि मिले तजि तीर । करत विहार दुहूँ दिशते मानो सींचत सुधा शरीर ॥ अति बल जोवन धार रुधिर रचि रखदन मिलि श्रमनीर। सूरदास स्वामी अरु प्यारी विरहत कुंज कुटीर ॥६६॥ कान्हगानवल निकुंज नवल नवल मिलि नवला निकेतनि रुचिर बनायो । विलसत विपिन विलास विविधवर वारिजवदन विकच सचुपायोलागत चंद्र मयूष सुतौ तनु लताभवन रंध्रनि मग आये। मनहुं मदन वल्लीपरहिसकर सीचत सुधाधार सतनाये ॥सुनि सुनि सूचति श्रवन सुंदरी मौन किये मोदति मन लाये । सूरसखी राधा माधौ मिलि क्रीडतहै रतिपतिहि लजाये ॥५६॥ कल्याण। हरपि पिय प्रेम तिय अंक लीन्हीं।पिये विन वसनकार उलटि धरि भुजनभरि सुरति रति पूर प्रति निवल कीन्हीं।आपने करन खनि अलक कुरवारही कबहुँ बाँधेअतिहि लगत लोभाकबहुँमुख मोरि चुंबन देत हरष द्वै अधर भरि दशन वह उनहि सोभा ॥ बहुरि उपन्यो काम राधिका पति श्याम मगन रस ताम नहिं तनु सँभारै । सूर प्रभु नवल नवला नवल कुंजगृह अन्त नहिं लहत दोउ रति विहारै॥१७॥ नटानागर श्याम नागरी नारि।सुरति रति रणजीत दोऊ अंग मन्मथ धारि॥ श्याम तनु धन नील मानो तडित तन सुकुमारि। मानो मर्कत कनक संयुत खच्यो काम सवारिः॥ कोक गुन करि कुशल श्यामा उत कुशल नन्दलालासूरश्याम अनंग नायक विवस कीन्हीं वाल॥ ॥५८॥ मलार ।। उल्हरि आयो शीतल बूँद पवन पुरवाई । वाढे. द्रुम सघन बन दोउहो चहुँ ओर घटा छाई ॥ अनमने भए कन्हाई भीजत देखि राधिका माधव कारी कामरि ओढाई ॥ अति दरेरकी झरेर टपकत सब अँबराईकांपत तनु त्रियाको पिय हँसिकै ग्रीवा लगाई॥भए एक और सूर श्याम श्यामा भरि कोर अरस परस रीझत उपरे नाही मैं समाई ॥१९॥ मलारा दीजै कान्ह काँधेहूको कमर नान्ही नान्ही बूंदन वरपन लागौ भीजत कुसुंभी अंवर.॥ बार बार अकुलाई राधिका देखि मेघ आडंबरहिँसिहँसि रीझी वैठिरहे दोउ ओढि सुभग पीताम्बर ॥ शिव सनका