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दशमस्कन्ध-१०


मुरली पर कर मुख नयन एक भए वारे। मनो सरोग विधु वैर विरंचि करि करत नाद वाहन चुचुकारे॥ उपमा एक अनूपम उपजत कुंचित अलक मनोहर भारे। विडरत बिझुकि जानि रथते मृगजनु ससंकि शशि लंगर सारे। हरि प्रति अंग विलोकि मानि रुचि ब्रज वनितानि प्राण धनवारे। सूरश्याम मुख निरखि मगन भई यह विचारि चित अनत नटारे॥७३॥ सोरठ ॥ हरि मुख निरखत नैन भुलाने। ये मधुकर रुचिं पंकज लोभी ताहीते न उड़ाने॥ कुंडल मकर कपोलनकी ढिगजनु रवि रैनि विहाने। भ्रुव सुंदर नैननि गति निरखत खंजन मीन लजाने॥ अरुण अधर ध्वज कोटि वज्रद्युति शशिगन रूप समाने। कुंचित अलक सिली मुख मानो लै मकरंद निदाने॥ तिलक ललाट कंठ मुकुतावलि भूषन मय मनि साने। सूरदास स्वामी अंग नागर ते गुणजात नजाने॥॥७४॥ केदारों ॥ देखिरी नवल नंद किसोर। लकुटसों लपटाइ ठाढे युवति जन मन चोर॥ चारु लोचन हँसि विलोकनि देखिकै चितभोर। मोहनी मोहन लगावत लटकि मुकुट झकोर॥ श्रवन ध्वनि सुरनाद मोहत करत हिरदै फोर। सुर अंग त्रिभंग सुंदर छवि निरखि तृण तोर॥७५॥ कान्हरो ॥ ब्रजवनिता देखति नंदनंदन। नवघन नील वरन ताऊपर खौर कियो तनु चंदन॥ कनकवरन कटि पीत पिछौरी उर भ्राजत वनमाला। निर्मल गगन श्वेत वादर पुर मनो दामिनी जाला। मुक्तामाल विपुल वग पंगति उडत एक भई जोति। सूरश्याम छवि निरखति युवती हरष परस्पर होति॥७६॥ सूही ॥ प्रातसमय आवत हरि राजत। रत्नजटित कुंडल सखि श्रवणनि तिनकी किरनि सुरत न लजात॥ सातै राशि मेलि द्वादशमे कटि मेखला अलंकृत साजत। पृथ्वी मथि पिता सो लैकर मुख समीप मुरली ध्वनि बाजत॥ जलधि तात तेही नाम कंठके किनके पंख मुकुट शिरभ्राजत। सूरदास कहै सुनहु गूढ हरि भक्तनि भजत अभक्तनि भाजत॥ ७७॥ नट ॥ हरि तन मोहिनी माई। अंग अंग अनंग शत शत वरानि नहिं जाई॥ कोऊ निरखि शिर मुकुटकी छबि सुरति विसराई। कोऊ निरखि विथुरी अलक मुख अधिक सुखदाई॥ कोऊ निरखि रही भालचंदन एकचित लाई। कोऊ निरखि विथुरी भ्रुकुटिपर नैन डहराई॥ कोऊ निरखि रही चारुलोचन निमिप भरमाई। सूर प्रभुकी निरखिसोभा कहत नहिं आई॥७८॥ सारंग ॥ हरिमुख किधौं मोहनीमाई। अवलोकत अघात नहिं मेरे नैनाठगे ठगोरी लाई॥ कुंडल किरनि निकट भूलोचन आरति मीन दृग सम चपलाई। श्रवनरंध नहि निपुन दास जनु काम कुवैनी कलित बनाई॥ छाजत रदन रदन छंदकी छबि मंदमाधुरी गिरा सुहाई। जया कुसुम दल मनहु कमलपर तडिजुथ कोश कोकिला गाई॥ सबविधि वशीकरनकीवाकी बलितबलाक अनुज बलझाई। सूरदास प्रभु वदन विलोकत जकित थकित चित्त अनत नजाई॥ ७९॥ गुंडमलार ॥ श्यामसुखराशि रसराशि भारी। रूपकी राशि गुणराशि यौवन राशि थकितभई निरखि नवतरुनी नारी॥ शीलकीराशि जलराशि आनंदराशि नीलनव जलद छबि बरनकारी। दयाकी राशि विद्याराशि बलराशि निर्दयराशि दनुकुल प्रहारी॥ चतुरई राशि छलराशि कलराशिहरि भजै जेहि हेतु तेहि देनहारी। सूरप्रभु श्याम सुखधाम पूरण काम लसति कटि पीत मुखमुरलिधारी॥ बिहागरी ॥ सुंदर बोलत आवत बैन। ना जानौ तेहि समय सखीरी सबतन श्रवन किनैन॥ रोम रोम में शब्द सुरतिकी नख शिख ज्यों चखयैन। येतेमान बनी चंचलता सुनी न समुझी सैन। तबतकि जकि ह्वैरही चित्रसी पल न लगत चितचैन। सुनहु सूर यह सांचकी संभ्रम, सपन किधौं दिन रैन॥८०॥ मलार ॥ नैना माई भूले अनत न

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