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दशमस्कन्ध-१० (२०९) मुख हेरी ॥ + ॥ जानदै झ्यामसुंदरलौं आजु । सुनिहो कत लोकलाजते विगरतुहै सब काजु ॥ राखो रोकि पाँइ बंधनके रोको अरु जलनाजु हाँ तो रोके मिलोंगी हरिको तू घर बैठे गाजु।चितवत हुती झरोखे ठाढी किये मिलनको साजु । सूरदास तनु त्यागि छिनकमें तज्यो कंतको राजु ॥ अध्याय ॥ २४ ॥ गोवर्धनपूजा ॥ विलावल ॥ नंदमहरसों कहति यशोदा सुरपतिकी पूजा विसराई । जाकी कृपा वसत बज भीतर जाकी दीनी भई बड़ाई ॥ जाकी कृपा दूध दही पूरन सहसमथानी मथति सदाई । जाकी कृपा अन्न धन मेरे जाकी कृपा नवौनिधि आई ॥ जिनकी कृपा पुत्र भयो मेरे कुशलरहो वलराम कन्हाई । सूर नंदसों कहति यशोदा. दिन आए अब करहु चडाई ॥ ३२ ॥ गौरी ॥ एईहैं कुलदेव हमारे । काहू नहीं और हम जानति गोधन हैं बजके रखवारे । दीपमालिकाके दिन पाँचेक गोपन कही बुलाई । वलि सामग्री करैं चडाई अब ही कहो सुनाई ॥ लई वुलाइ महरि महरानी सुनतहि आई धाई । नंदघरनि तव कहति सखिनसों कतहो रही भुलाई । भूली कहा कहौ सो हमसों कहति कहा उरपाइ । सूरदास सुरपतिकी पूजा तुम सवही विसराइ ॥३३॥ चौंकि परी सब गोकुल नारि । भली कही सवही सुधि भूली तुमहि करी सुधि भारि ॥ कहो महरिसों करी चडाई हम अपने घर जाति । तुमहूं करौ भोग सामग्री कुलदेवता अमाति ॥ यशुमति को अकेली हो मैं तुमहुँ संग मुहिदीजी । सूर हँसति जनारि | महरिसों अहैं साँचु पतीजौ ॥ ३४ ॥ कल्याण ॥ कही मोहि भली कीनी महरि । राजकाजहि रहत डोलत लोभहीकी लहार । क्षमा कीजो मोहिहौं प्रभु तुमहिं गयो भुलाइ । ग्वालसों कहि तुरत पठयो ल्याउ महरि बुलाइ॥ नंदकरो उपनंद व्रजके अरु महर वृपभान । अवहिं जाइ बुलाइ आनौ करत दिन अनुमान ॥ आइगए दिन अवहिं नरे करत मन इह ज्ञान । सूरनंद विनय करत करजोरि सुरपति ध्यान ।। ३९ ॥ बिलावल ॥ नंदमहर उपनंद बुलाए । आदर करि बैठनको दीनो महर महर मिलि शीशनवाए।मनही मन सब सोच करतहैं कंसनृपति कछु मांगि पठापाराज अंशधन जो कछु उनको विनुमाँगे सो हमर्दै आए ॥ वृझत महर वात नंद महरहि कॉन काज हम सवाने बुलाए । सूर नंद यह कहि गोपनसों सुरपति पूजाके दिन आए ॥३६ ॥ हँसत गोप कहि नंदमहरसौभली भई यह वात सुनाई । हमाहिं सवनि तुम बोलि पठाए अपने जिय सब गए डराई । काहेको डरपे हम वोलत हँसत कहत वातै नँदराई । वडो सदेहु कियो हम तुमको ब्रजवासी हम तुम सब भाई। । करो विचार इन्द्र पूजाको जो चाहो सो लेहु मँगाईविरप दिवसको दिवस हमारो घर घर नेवज करौ चडाई ।। अन्नकूट विधि करत लोग सब नेम सहित करि करि पकवान्ह । महरि जोरि कर विनय इन्द्रसों सूर अमर करि कीजै कान्ह ।। ३७॥ गावत मंगलचार महर घर । यशुमति भोजन करति चडाई नेवज करि करि धरति श्यामडर ॥ देखेरही नछुवे कन्हैया कहनाने वह देवकाजपर । और नहीं कुलदेव हमारे के गोधन के वै सुरपतिवर ॥ करति विनय करजोरि यशोदा कान्हहि कृपा करी करुणाकर और देव तुम सरि कोउ नाही सूर करौं सेवा चरणनतर ॥ ३८ ॥ मूही॥ वाजति नंद अवास बधाई । वैठे खेलत द्वार आपने सात वरपके कुँवर कन्हाई ॥ बेठे नंद सहित वृपभानुहि और गोप बैठे सब आईाथाप देत घरनके द्वारे गावति मंगल नारि सुहाई ॥ पूजा करत इन्द्रकी जानी आए श्याम तहाँ अतुराई । वृद्धत वार वार हरि नंदहि कौन देवकी करत पुजाई । इन्द्र बड़े कुल देव हमारे उनते सब यह होत बड़ाई।सूरश्याम तुमरे हित कारण यह पूजा हम करत सदाई ॥३९॥ आसावरी ।। नंद को घर जाहु कन्हाई। ऐसे में तुम जैहो जिनि कहु अहो महरि २७