श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। तेरी गति ठानी ॥ ते पुनि श्याम सहजवे सोभा अंवर मिस अपने उर आनी ॥२॥ पुलकित अंग अवहिँ लै आयो निरखि देखि निज देह सियानी।सूर सुजान के बुझे प्रेम प्रकाश भयो विहसानीच यह पद कह्यो इतनो कहिके श्रीसूरदासजीके चित्त श्रीठाकुरजीको श्रीमुख तामें करुणा रसके भरे नेत्र देखे तब श्री गुसांईजी पूछो जो सूरदासजी नेत्रकी वृत्ति कहां है तब सूरदास जीने एक पद और कह्यो सो पद ॥ राग विहागरो-खंजन नैन रूप रसमाते । अतिशय चारुचपल अनियारे पल पिंजरा न समाते३॥ चलचलजातनिकटश्रवणनकेउलटपलटताटंकफंदाते।सूरदासअंजनगुणअटकेनातरअबउड़िजाते इतनो कहतही सूरदासजीने या शरीरको त्याग कियो सो भगवत् लीलामें प्राप्ति भये पाछे श्रीगुसांईजी सब सेवकन सहित श्रीगोवर्द्धन आये ताते सूरदासजी श्रीआचार्यजी महाप्रभुनके ऐसे कृपापात्र भगवदीयहैं ताते (सो) इनकी वार्ताको पार नहीं ताते इनकी वार्ता कहांताईलिखिये। सीधीहिन्दी-पहिला भागमें गया गवर्नमेन्ट स्कूलके पंडित बलदेव मिश्रने लिखाहै कि सूरदास का घर कृष्णावेना गांवमें देवशर्मा ब्राह्मण का बेटा विलमङ्गल पांड़े इनका नामथा । पहले इनकी चालचलन अच्छी नहींथी। पीछे ये सुधरे और सवालाख भजनका सूरसागर बनाकर बड़े नामी हुए। लोग कहते हैं कि इन्होंने अपनी आंख आपही फोडीथी। 'सुगम पंथमें पंडित गणपत लाल चौवे फर्स्ट असिस्टेंट मास्टर स्कूल रायपुरने लिखाहै कि- सूरदास किंवा सूरदास-मदनमनोहर शरध्वज ब्राह्मण दिल्लीनगरके समीप किसीग्रामके रहनेवाले थे। किसीसमय दिल्लीआये वहाँ एक दिन किसी स्त्रीको कोठेपर खड़ीदेख उसपर मोहित हुए, और कोठेकी ओर इकटक चितै रहे । लोग इनकी दशादेख धिक्कारनेलगे परंतु वह स्त्री घरसे बाहर निकल बोली "विप्रजी क्या आज्ञा होती है" विप्र बोले "क्या सचमुच मेरी आज्ञा पालेगी" वह बोली "निस्सन्देह" मुझे ईश्वर साक्षी है तवतो वह विप्रके कहनेके अनुसार दो सुइयां ले आई और जब विप्रने कहा कि मेरी छातीपर बैठ इन दोनों सुइयोंको मेरे नेत्रोंमें घुसेड़दे उसने वैसाही किया और तबहीसे सूरदास कहलानेलगे। लोगोंने इनकी बड़ी प्रशंसाकर इनके कहनेके अनु- सार मथुरा वृन्दावनमें पहुंचा दिया यहाँपर इन्होंने सवालाख विष्णुपदका एक बहुत बड़ा सूरसागर नामीग्रंथ बनाया निदान कुछ कालतक ये अकबर बादशाहकी सभामें रहे और फिर परलोकको सिधारे। • प्राचीन मनुष्योंकी कहावतहै कि,ये उद्धवका अवतारथे वे सब कवियोंमें श्रेष्ठ गिनेजाते हैं यथा दो-सूर सूर्य तुलसी शशी,उड़गण केशवदासाअबके कवि खद्योत सम,जहँ तहँ करहिं प्रकाश। रामरसिकावलीकी टिप्पणीमें लिखाहै कि 'अंक वाले कवियोंका आगे वर्णन किया जायगा।' परंतु मतिराम कविका वर्णन काव्यरत्नाकरमें लिखा गयाहै अतएव यहाँ उनका कुछ काव्य लिखा जाता है। . . (१) मतिराम त्रिपाठी टिकमापुरवाले। कवित्त-पूरण पुरुषके परम हग दोऊ जानि कहत पुराण वेद बानियो रतिगई। कवि मतिराम दिनपति यों निशापतियों दुहुँनकी कीरति दिशान माँझ मठिगई ॥ . रविक करन भये एक महादानी यह जानि जिय आनि चिंता चित्त मांझ चढ़िगई। .. . तोहि राज वैठत कुमाऊं श्रीउदोत चंद्र चंद्रमाकी करक करेजेहूंते कढ़िगई ॥१॥
पृष्ठ:सूरसागर.djvu/३०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।