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- D (२०४) सूरसागर। गए घरको श्याम । द्वारहीते निरखि देख्यो जननी लागी काम ॥ इहै वाणी कहति मुखते कहाँ ! गयो कन्हाई ॥ आप ठाढ़े जननि पाछे सुनतहै चितलाई। जल भरन युवती नपार्दै घाटरोकत जाइ। सूर सबके फोरि गागार श्याम गयो पराइ ॥ ९१ ॥ नटनारायण ॥ यशुमति यह कहिकै रिसपाव ति । रोहिणि करति रसोई भीतर कहि कहि तिनहि सुनावति।गारी देत वह वेटिनिको वैधाई द्या आवति । हाहा करति सवनिसों मैंही कैसे खूट उंडावति॥जाति पांतिसों कहा अचगरी यह कहि सुतहि धिरावति । सूरश्यामको सिखवत हारी मारेहु लाज न आवति ॥ ९२ ॥ सारंग ॥ तू मोहीको मारन जानति । उनके चरित कहा कोउ जानै उनहि कही तू मानति ॥ कदमतीरते मोहिं बुलायो गढ़ि गढ़ि वात वानति । मटकत गिरी गागरी शिरते अबऐसी बुधि ठानति ॥ फिरि चितई तू कहां रह्यो कहि मैं नहि तोको जानति । सूरसुतहि देखतही रिसगइ मुख चूमति उर आनति ॥ ९३ ॥ गौरी ॥ झूठहि सुतहि लगावति खोरि । मैं जानति उनके ढंग नीके वातें मिलवति जोरि । वे यौवन मदकी सब माती कहां मेरो तनक कन्हाईआपुहि फोरि गागरी शिरते उरहन लीन्हे आई।तू उनके ढिग जाति कितहिहै वै पापि नि सब सारि । सूरश्याम अघ कह्यो मानि तू हैं सब ढीठ गुवारि ॥ ९४॥ मोहन ॥ मोहन वाल गोविंदा पाई मेरो कहा जाने वोलि । उरहनलै युवती सब आवति झूठी वतियाँ जोरि ॥ कोऊ कहति गेंडुरी मेरी लीन्ही कोऊ कहति गगरी गयो फोरी । कोज चोली हार बतावति कान्हा तेरा भोरी ॥ अव आवै जो उरहन लैकै तौ पठऊ मुंहमोरी । सूरकहाँ मेरो तनक कन्हाई आपुन यौवन नोरी ॥ ९५ ॥ कान्हरो ॥ ब्रज घर घर यह बात चलावत । पशुमतिको सुत करत अचगरी यमुना जल कोउ भरन न पावत ॥ श्याम वरन नटवर वपुकाछे मुरली राग मलार बजावत । कुं डल छवि रवि किरन हूंते युति मुकुट इंद्र धनुते सोभावत ॥ मानत काहुन करत अचगरी गागरि धरि जल सुइँ ढरकावत । सूरश्यामको मात पिता दोउ ऐसे ढंग आपुनहिं पढावत ॥ ९६॥ गौरी करत अचगरी नंदमहरको । नखालिये यमुनातट बैठो निवहत नाहिं सब लोग डहरको॥ कोऊ खिझो कोऊ कितने वरजो युवतिनके मन ध्यानामन क्रम वचन श्यामसुंदरते और नजानति आना। इह लीला सब श्याम करत, ब्रज युवतिनके हेतासूर भजे जेहि भाव कृष्णकोताको सोइ फल देता। यमुनाजल कोउ भरन नपा।आपुन बैठे कदम डार चढि गारी देदैसवनि वोलावै।।काहूकी गगरी गहि फोरत काहू शिरते नीरठरावै। काहूसों करि प्रीति मिलतुहै नैनसैनदे चितहि चुरावै ।। वरवसही अकवार भरत धार काहसों अपनो मन लावै । सुरश्याम अति करत अचगरी कैसेहुं काहू हाथ नआवै।।९८॥धनाश्री ॥ब्रजग्बैंडे कोउ चलन न पावत । ग्वाल सखा संग लाने डोलत =दै हांक जहाँ तहांधावताकाहूकी गेंडुरी फटकारत काहूकी गगरी ढरकावतकाहूको गारीदै भाजत काहूका उठि अंकम लावत । काहू नहिं मानत ब्रजभीतर नंदमहरको कुँवर कहावतासूरश्याम नटवर वधु काछे यमुनाके तट मुरली बजावत।।९९॥टोडी||गोकुलके ग्वैडे एक सांवरो सो ढोंग माई आँखियन के पैंडे पैठि जीके पैंडे परयौहै।कल न परत छन गृह भयो समबन तन मन धन प्राण सरवस हरयाह भवन न भावै माई आंगन न रह्यो जाइ करै हाइ हाइ देखौ जैसे हाल करयोहै। सूरदास प्रभु नीक गावत मधुर सुर मानहु मुरलीमें पियूषरस भरचौहै ।। ९०० ॥ राग नट | राधा सखियन लइ बोलाइ । चलहु यमुनाजलीह जैये चलीं सब सुखपाइ ॥ सबनि एक एक कलस लीन्हो तुरत पहुँची जाइ। तहां देख्यो श्याम सुंदर कुँरि मन हरपाइ॥ नंदनंदन देखिरीझे चितैरहे चितलाइ । । - - D