श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्रः। २३ वार्ता:प्रसंग.॥॥४॥ बहुरि श्रीसूरदासजी श्रीनाथजी द्वारु आयके बहुत दिन ताई श्रीनाथजीकी सेवा कीनी बीचः बीचमें श्रीगोकुल श्रीनवनीत प्रियाजीके दर्शनको आवते सोएक समय सूरदासजी श्रीगोकुल आये श्रीनवनीतःप्रियाजीके दर्शन किये और बाललीलाके पद बहुत सुनाये सो श्रीगुसाईजी मुनिके. बहुत प्रसन्न भये पाछे श्रीगोसाईजीने. एक पालना संस्कृतमें कियोसो पालना सूरदासजीको सिखायो सो पालना सूरदासजीने श्रीनवनीत प्रियाजी झुलत हुते ता समय गायो सो. पद। .. रागरामकली। प्रेषपर्यकशयन। यह पद सूरदासजीने सम्पूर्ण करिके गायो सुनायो श्रीनवनीतःप्रियाजीको पाछे या पदके भावः के अनुसार बहुत पद किये सो सुनिके श्रीगोसाईजी बहुत प्रसन्न भये पालनाके भाव अनुसार पदः , गायो सो पद। राग विलावल-बाल विनोद आंगनमेंकी डोलनि ॥ मणिमय भूमि शुभग नंदालय बलिं बलि गई तोतरी बोलनि ॥ १॥ कठुलाकंठ रुचिर केहरिनख ब्रजमाला बहु लई अमोलनिः ।, वदन. सरोज तिलक गोरोचन लर लटकन मनु मधु गनि लोलनि ॥२॥ लीन्यो, कर परसत आननः पर काखाय कछू लग्योः कपोलनिकहे जन सूर-कहालों वाँ धन्य नंद जीवन जग तोलनि ॥३॥ ..और पद राग विलावल-गोपाल दुर, माखन खात । देख सखी शोभा जो बढ़ीः अति: श्याम मनोहर गातः ॥ १॥ उठि अवलोकि ओट ठगी है जिहि विधि नहिं लखिलेत । चकृतानन, चहूँ: दिश चितवत और सबनको देत ॥२॥ सुंदर कर आनन समीप हरि राजत यहै अकार । जनु. जलरुह तजि र विधीसों लाय मिलत उपहार ॥३॥ गिरिगिरि परत वदनते ऊपर दै दधि सुतके विंदु । मानहुँ सुधाकन खोरवत प्रियजन विंदु ॥१॥ वाल विनोद विलोकि सूर प्रभु वित भई. ब्रजकी नारि । फुरतन वचन बरजिवको मन गहि विचार विचारि॥५॥ रागजैतश्री-कहाँ लगि वरणों सुन्दरताई । खेलत कुँवर कतिक आँगनमें नैन निरखि सुखपाई॥॥ कुलहे लसत श्यामसुंदरके बहुविधि रंग बनाई । मानउ नव धन ऊपर राजत मघवा धनुष चढ़ाई श्वेत पीत अरु असिंतलालमणि लटकनभाल रुराई।मानहुँ असुरदेवगुरुसों मिलि भूमिजसो समुदाई अतिसुदेशमृदु चिकुर हरत मनमोहनमुखबिगराईीमानहुँमंजुल कंजनऊपर अलि आवलि फिरिआई दूधदंतछवि कहीनजातकछु अलिपललपझलकाईकिलकतहँसतदुरितप्रगटतमानोंबिंदुविपुलताई खंडितवचनदेतपूरणमुख अद्भुतयहलपमाई।धुदुरुनचलत उठतप्रमुदितमन सूरदासबलिजाई.॥६॥ रागरामकली-देखो सखी एक अद्भुतरूप । एक अंबुज मध्य. देखियत बीस दधिसुत जूप ॥१॥ एकअवलि दोय जलचर उभे अर्क अनूपा ॥ पंजचार चदिगहि देखियतःकहो कहाँ स्वरूप ॥२॥ ॥ शिशुगणमें भईशोभा करो कोउ विचार ॥ सूर श्री गोपालकी छवि राखो यह निरधार ॥३॥. ...ऐसे पद सूरदासजीने गाये पाछे फेर श्रीनाथजी द्वार आये॥ वार्ताप्रसंगः॥५॥ - अब सूरदासजीने श्री नाथनीकी सेवा बहुत: कीनी बहुत दिनताई ताः उपरांत भगवत इच्छा | जानी जो अब प्रभुनकी इच्छा बुलायवेकी है यह विचारके जो नित्यलीला फलात्मक रासलीला जो जहाँ करे हैं ऐसोजो परासोली तहाँ सूरदासजी आये श्रीनाथजीकी ध्वजाको दण्डवतःकरिके, .
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